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248. satır: |
248. satır: |
| ومن هنا فالنصرانية ربما تتمزق بهجوم العوام المظلومين على الظالمين الذين يَعُدّون أنفسهم خواص النصارى، حيث النصرانية تُعِين تحكّمهم. بينما الإسلام لا ينبغي أن يتزعزع لأنه ملك العوام أكثرَ من الخواص الدنيويين. | | ومن هنا فالنصرانية ربما تتمزق بهجوم العوام المظلومين على الظالمين الذين يَعُدّون أنفسهم خواص النصارى، حيث النصرانية تُعِين تحكّمهم. بينما الإسلام لا ينبغي أن يتزعزع لأنه ملك العوام أكثرَ من الخواص الدنيويين. |
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| <span id="يُخ۟رِجُ_ال۟حَىَّ_مِنَ_ال۟مَيِّتِ_وَ_يُخ۟رِجُ_ال۟مَيِّتَ_مِنَ_ال۟حَىِّ"></span>
| | == يُخ۟رِجُ ال۟حَىَّ مِنَ ال۟مَيِّتِ وَ يُخ۟رِجُ ال۟مَيِّتَ مِنَ ال۟حَىِّ == |
| == يُخ۟رِجُ ال۟حَىَّ مِنَ ال۟مَيِّتِ وَ يُخ۟رِجُ ال۟مَيِّتَ مِنَ ال۟حَىِّ ==
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421. satır: |
420. satır: |
| == حوار في رؤيا == | | == حوار في رؤيا == |
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| | «المعنى وكذا الألفاظ التي ظلت في الخاطر هي نفسها كما جاءت في الرؤيا» |
| Meali ve hatırda kalan elfazı aynendir.
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| كنت في أيلولِ سنة ١٩١٩ أتقلب في اضطراب شديد، من جراء اليأس البالغ الذي ولّدته حوادث الدهر؛ كنت أبحث عن نور بين هذه الظلمات المتكاثفة القاتمة.. لم أستطع أن أجده في يقظة هي رؤيا في منام. بل وجدته في رؤيَا صادقةٍ هي يقظةٌ في الحقيقة. | | كنت في أيلولِ سنة ١٩١٩ أتقلب في اضطراب شديد، من جراء اليأس البالغ الذي ولّدته حوادث الدهر؛ كنت أبحث عن نور بين هذه الظلمات المتكاثفة القاتمة.. لم أستطع أن أجده في يقظة هي رؤيا في منام. بل وجدته في رؤيَا صادقةٍ هي يقظةٌ في الحقيقة. |
803. satır: |
800. satır: |
| فقساوسة أوربا الذين يشنون هجومهم على المتعصبين عندنا، كل منهم أكثر تعصباً وتزمتاً في مسلكهم السقيم؛ فلو مَدَح عالمٌ دينيٌ الشيخَ الكيلاني بإفراطٍ كمدحِ أولئك لشكسبير لكُفِّرَ. | | فقساوسة أوربا الذين يشنون هجومهم على المتعصبين عندنا، كل منهم أكثر تعصباً وتزمتاً في مسلكهم السقيم؛ فلو مَدَح عالمٌ دينيٌ الشيخَ الكيلاني بإفراطٍ كمدحِ أولئك لشكسبير لكُفِّرَ. |
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| | هيهات، أين المحبة من هؤلاء؟ |
| Heyhat! Bunların neresinde millete muhabbet ve millet için hamiyet!
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| </div> | | إن إحدى العقد الحياتية المحرِّكة للمجتمع والدافعةِ إلى الفعالية، هو الفكر الأدبي. الذي بدأ فينا وحده بالنمو -مع الأسف- ولا سيما أدب الهجاء ورغبة تحقير الآخرين. والذي ينطوي على الإعجاب بالنفس والغلو في الوصف في أسلوب شعري وبما لا يليق بالأدب. |
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| | فهو أدب خارج عن الأدب الحقيقي الذي تُؤَدِّبنا به الآيةُ الكريمة ﴿ وَلَا يَغْتَبْ بَعْضُكُمْ بَعْضًا ﴾ (الحجرات:١٢) بحيث يهاجم كلٌّ الآخرَ. |
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| | ومع ردّ تعرضات ضمنية للأمة وللإسلام بوجه أولئك القسس، نمر مرّ الكرام على هجائهم اللاديني وإهانة الآخرين، فنمضي قائلين: ربما يستحقون ذلك. |
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| | إنني أظن أن الباعث على ذل هذه الأمة أكثرَ من الجهل هو الذكاء الأبتر العقيم غيرُ المرافق لنور القلب. وفي نظري أن أخطر مرض هو الانحياز المتطرف، لأنه يدفع إلى خلاف المقصود، بإخراج كل شيء عن طوره. |
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| | أيها الأخ! |
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| | لقد بدأتْ عندنا تباشيرُ أسبابِ فتية، قوية، بدلاً من تلك الأسباب الهرمة التي ولّدت تقدم النصرانية. |
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| | وقد فصّلت ذلك في كتاب آخر. (<ref>المقصود الخطبة الشامية.</ref>) |
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| | '''حكاية:''' |
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| | قبل عشر سنوات (المقصود سنة ١٩١٠م) ذهبتُ إلى «تفليس» وصعدتُ تل الشيخ صنعان، كنت أتأمل تلك الأرجاء وأراقبها. فاقترب مني أحد رجال البوليس فقال: |
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| | بم تنعم النظر؟ |
| Esefâ! Heyet-i içtimaiyeyi faaliyet ve harekete götüren çok ukde-i hayatiyelerden, bizde inkişafa başlayan yalnız fikr-i edebiyat bâhusus şairane, müfritane, edebşikenane, hodpesendane olan fikr-i hiciv ve arzu-yu tahkirdir.
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| | قلت: |
| وَ لَا يَغ۟تَب۟ بَع۟ضُكُم۟ بَع۟ضًا
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| | أخطّط لمدرستي! |
| Te’dib-i hakikiye karşı edepsizliktir ki birbirine saldırıyor. Fakat millete ve İslâmiyet’e karşı olan ta’rizat-ı zımniyelerini o kâselislerin yüzlerine çarpmakla beraber, onlar birbirine karşı dinsizcesine hiciv ve terzilleri ise kim bilir belki müstahaktırlar düşünüp deyip geçmek ile iktifa ederiz.
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| | قال: |
| Ben zannederim ki bu milletin perişaniyetine; fazla cehaletten ziyade, nur-u kalp ile müterafık olmayan fazla zekâvet-i betra tesir etmiştir. Bence en müthiş maraz asabîliktir. Zira her şeyi haddinden geçirmekle, aksü’l-amel yaptırır.
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| | من أين أنت؟ |
| Ey birader, âlem-i Hristiyan’ın rüçhanına sebebiyet veren ihtiyarlaşmış olan esbaba tekabül edecek genç, dinç esbab bizde inkişafa başlamıştır. Başka kitapta tafsil etmişim. Bir hikâye:
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| | قلت: من بتليس |
| (<ref>Bu kitabın birinci tabından yedi sene geçmiştir. Demek on sene evvel, yani Rumî 1326 senesinde.</ref>) Bundan on sene evvel Tiflis’e gittim. Şeyh San’an Tepesi’ne çıktım, dikkatle temaşa ediyordum. Bir Rus yanıma geldi. Dedi:
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| | قال: |
| — Niye böyle dikkat ediyorsun?
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | وهنا تفليس! |
| Dedim:
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | قلت: |
| — Medresemin planını yapıyorum.
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| | بتليس وتفليس شقيقتان |
| Dedi:
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| | قال: |
| — Nerelisin?
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | ماذا تعني؟ |
| — Bitlisliyim dedim.
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| | قلت: |
| Dedi:
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | لقد بدأ ظهور ثلاثة أنوار متتابعة في آسيا، في العالم الإسلامي، وستنقشع عندكم ثلاث ظلمات بعضها فوق بعض، سيُمزَّق هذا الستار المستبد ويتقلص، وعندها آتي إلى هنا وأُنشئ مدرستي. |
| — Bu Tiflis’tir.
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| </div>
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| | قال: |
| Dedim:
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | هيهات! إنني أحار من فرطِ أَمَلِكَ؟ |
| — Bitlis, Tiflis birbirinin kardeşidir.
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| </div>
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| | قلت: |
| Dedi:
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| | وأنا أحار من عقلك! أيمكن أن تتوقع دوام هذا الشتاء؟ إن لكل شتاء ربيعاً ولكل ليل نهاراً. |
| — Ne demek?
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| </div>
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| | قال: |
| Dedim:
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | لقد تفرق المسلمون شذر مذر. |
| — Asya’da, âlem-i İslâm’da üç nur, birbiri arka sıra inkişafa başlıyor, sizde birbiri üstünde üç zulmet inkışaa başlayacaktır. Şu perde-i müstebidane yırtılacak, takallüs edecek, ben de gelip burada medresemi yapacağım.
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| </div>
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| | قلت: |
| Dedi:
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| </div>
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| | ذهبوا لكسب العلم، فها هو الهندي الذي هو ابن الإسلام الكفء يَدرس في إعدادية الإنكليز. |
| — Heyhat! Şaşarım senin ümidine.
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | وها هو المصري الذي هو ابن الإسلام الذكي يتلقى الدرس في المدرسة الإدارية السياسية للإنكليز.. |
| Dedim:
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| | وها هو القفقاس والتركستاني اللذان هما ابنا الإسلام الشجاعان يتدربان في المدرسة الحربية للروس.. الخ. |
| — Ben de şaşarım senin aklına. Bu kışın devamına ihtimal verebilir misin? Her kışın bir baharı, her gecenin bir neharı vardır.
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| </div>
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| | فيا هذا! إن هؤلاء الأبناء البررة النبلاء، بعد ما ينالون شهاداتهم، سيتولى كل منهم قارة من القارات، ويرفعون لواء أبيهم العادل، الإسلام العظيم، خفاقاً ليرفرف في آفاق الكمالات، معلنين سر الحكمة الأزلية المقدرة في بني البشر رغم كل شيء. |
| Dedi:
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | وهذا هو نصف حكايتي. |
| — İslâm parça parça olmuş.
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| | مثال: |
| Dedim:
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| | والآن سأمثل للحالة الروحية التي تدفع إلى القول: «نفسي نفسي.. ماذا عليّ». بالآتي: |
| — Tahsile gitmişler. İşte Hindistan, İslâm’ın müstaid bir veledidir, İngiliz mekteb-i idadisinde çalışıyor. Mısır, İslâm’ın zeki bir mahdumudur, İngiliz mekteb-i mülkiyesinden ders alıyor. Kafkas ve Türkistan, İslâm’ın iki bahadır oğullarıdır, Rus mekteb-i harbiyesinde talim alıyor, ilâ âhir.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | يتقابل شخصان وتبدأ المناظرةُ والمفاخرة بينهما، أحدهما جسور ولكن عضت النوائبُ (<ref>بمعنى أن «الدنيا سجن المؤمن وجنة الكافر» ليس مجازاً. (المؤلف).</ref>) عشيرتَه الأصيلة. والآخر جبان، لكنه ينتمي إلى عشيرة أخرى تبسمت لها الأقدار. |
| Yahu şu asilzade evlat, şehadetnamelerini aldıktan sonra her biri bir kıta başına geçecek, muhteşem âdil pederleri olan İslâmiyet’in bayrağını, âfak-ı kemalâtta temevvüc ettirmekle, kader-i ezelînin nazarında feleğin inadına, nev-i beşerdeki hikmet-i ezeliyenin sırrını ilan edecektir.
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| | فالأول يرفع رأسه ويرى ذلّ عشيرته لا تستطيع عزة نفسه تحمّل الذل، فيخفض رأسه وينظر إلى نفسه، فيراها محملة إلى حدٍّ ما بالعزة. وعندها يبدأ غروره المجروح بالأنانية بالصراخ قائلاً: وماذا عليّ.. ها أنذا! وهاهي أفعالي أنا.. فينسحب من تلك العشيرة أو ينتسب إلى أخرى مُظهِراً عدم أصالته. |
| İşte hikâyemin yarısı bu kadar.
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| | أما الثاني فكلما رفع رأسه سطعت أمام ناظرَيْه مفاخرُ عشيرته فينتفخ غروره. ولكن ما إن ينظر إلى نفسه يراها واهية، وعندها يتيقظ روح التضحية والفداء في الشعور القومي، فيقول: فداكِ نفسي يا عشيرتي!. |
| Neme lâzım ve nefsî nefsî dediren halet-i ruhiyeyi, bir temsil ile beyan edeceğim:
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | فإذا فهمتَ الرمز الكامن في هذا المثال، فإن في ميدان العالم هذا، ميدانُ الامتحان والمجاهدة والسباق، إذا تظاهرت مشاعر كل مسلم ونصراني، وكردي ورومي، في أثناء المبارزة في الحَمِيَّة، تجد سر المثال. ولكن هذا التفاوت ليس كما يظنه الناس وربما هو ناتج من النظر الظاهري والسطحي وغلط الحس. |
| Felekzede, perişan (<ref>Demek اَلدُّن۟يَا سِج۟نُ ال۟مُؤ۟مِنِ وَ جَنَّةُ ال۟كَافِر mecaz değilmiş.</ref>) fakat asil bir aşiretten bir cesur adam ile tâli’i yaver, feleği müsait, diğer bir aşiretten bir korkak ile bir yerde rast gelirler. Müfahere, münazara başlar.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | '''أيها المسلم!''' |
| Evvelki adam başını kaldırır, aşiretinin zelil olduğunu görür, izzet-i nefsine yediremez. Başını indirir, nefsine bakar, bir derece ağır görür. Eyvah! O vakit “Neme lâzım, işte ben, işte ef’alim!” gibi şahsiyatla yaralanmış gururu feryada başlar. Veyahut o aşiretten çekilip veya asılsızlık gösterip başka aşirete intisap eder.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | إياك أن تنخدع. فلا تخفضْ رأسك! فإن قطعةَ ألماسٍ نادرة مهما كانت صَدِئَةً أفضلُ من قطعة زجاج لامعة دوماً. فضعفُ الإسلام الظاهري ناشئ من خدمة هذه المدنية الحاضرة في سبيل دين آخر. |
| İkinci adam başını kaldırdıkça aşiretinin mefahiri gözünü kamaştırır, hiss-i gururunu kabartır, nefsine bakar gevşek görür. İşte o vakit, hiss-i fedakârî fikr-i milliyet uyanır “Aşiretime kurban olayım.” der.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | آن الأوان إذن أن تبدل هذه المدنيةُ صورتَها، فإذا ما بَدَّلَتْها فالقضية تنعكس. |
| Eğer bu temsilin remzini anladınsa şu müsabaka ve mücadele meydanı olan bu cihan-ı ibrette bir Müslim –mesela– bir Hristiyan veya bir Kürt, bir Rum ile manen hissiyatları mübareze-i hamiyette mukabele ve muvazene ile tezahür etse temsilin sırrını göreceksin. Lâkin şu tefavüt, herkesin zannettiği gibi değildir. Belki zâhir-perestlik ve sathîlik ve galat-ı histen gelmiştir.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | فكما قيل في البداية أينما كان المسلم فهو البدوي بالنسبة للنصراني، مستنكف عن المدنية لا يكترث بها ويتحرج في قبولها، فإذا ما بُدّلت الصورة فالوضع يتبدل.. |
| '''Ey Müslüman!'''
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | وكل آت قريب. |
| Aldanma! Başını indirme! Paslanmış bîhemta bir elmas, daima mücella cama müreccahtır. Zâhiren olan İslâmiyet’in zaafı, şu medeniyet-i hazıranın, başka dinin hesabına hizmet etmesidir. Halbuki şu medeniyet suretini değiştirmesi zamanı hulûl etmiştir. Suret değişirse kaziye bilakis olur. Nasıl şimdiye kadar bidayetinde söylenildiği gibi nerede Müslüman varsa Hristiyana nisbeten bedevî, medeniyete karşı müstenkif ve soğuk davranır ve kabulünde ızdırap çeker. Suret değişse başkalaşır.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | و ﴿ اِنَّ مَعَ الْعُسْرِ يُسْرًا ﴾ (الشرح: ٦) |
| كُلُّ اٰتٍ قَرٖيبٌ اِنَّ مَعَ ال۟عُس۟رِ يُس۟رًا
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | '''سعيد النورسي''' |
| '''Said Nursî (rh)''' | |
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