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893. satır: |
893. satır: |
| فهذه المعجزة وإن تكررت مرات عدة، إلّا أننا سنبين عدداً من صورها الصحيحة الكثيرة، ونوردها في بضعة أمثلة: | | فهذه المعجزة وإن تكررت مرات عدة، إلّا أننا سنبين عدداً من صورها الصحيحة الكثيرة، ونوردها في بضعة أمثلة: |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | <span id="Birinci_Misal:"></span> |
| === Birinci Misal: === | | === المثال الأول: === |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | روى ابن ماجه والدارمي والبيهقي عن أنس بن مالك وعلي، وروى البزار والبيهقي عن عمر، أن ثلاثة من الصحابة الكرام رضوان الله تعالى عليهم أجمعين قالوا: كان الرسول الأكرم ﷺ قد حزن حزناً شديداً من تكذيب الكفار له «قال: |
| Başta İmam-ı Mâce ve Darimî ve İmam-ı Beyhakî nakl-i sahihle Hazret-i Enes İbn-i Mâlik’ten ve Hazret-i Ali’den ve Bezzar ve İmam-ı Beyhakî Hazret-i Ömer’den haber veriyorlar ki üç sahabe demişler: Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâm, küffarın tekzibinden müteessir olarak mahzun idi. Dedi:
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | اللهم! أرني آيةً لا أُبالي من كذّبني بعدها» |
| يَا رَبِّ اَرِنٖى اٰيَةً لَا اُبَالٖى مَن۟ كَذَّبَنٖى بَع۟دَهَا
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | وفي رواية أنس «أن جبريل عليه السلام قال للنبي ﷺ ورآه حزيناً: أتحبّ أن أُريك آية. قال: نعم! فنظر رسول الله ﷺ إلى شجرةٍ من وراء الوادي، فقال: ادعُ تلك الشجرة، فجاءت تمشي حتى قامت بين يديه، قال: مُرها فلترجع، فعادت إلى مكانها». (<ref>القاضي عياض، الشفا ١/ ٢٩٨، ٢٩٩.</ref>) |
| Enes’in rivayetinde, Hazret-i Cebrail hazır idi. Vâdi kenarında bir ağaç vardı. Hazret-i Cebrail’in i’lamıyla, Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâm o ağacı çağırdı; tâ yanına geldi. Sonra “Git!” dedi. Tekrar gitti, yerine yerleşti.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | <span id="İkinci_Misal:"></span> |
| === İkinci Misal: === | | === المثال الثاني: === |
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| | روى القاضي عياض -علّامة المغرب- في كتابه (الشفا) بسند عال صحيح عن عبد الله بن عمر رضي الله عنه قال: |
| Allâme-i Mağrib Kadı İyaz Şifa-i Şerif’te ulvi bir senetle, doğru ve sağlam bir an’ane ile Hazret-i Abdullah İbn-i Ömer’den haber veriyor ki: Bir seferde Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâmın yanına bir bedevî geldi.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | «كنا مع رسول الله ﷺ في سفر، فدنا منه أعرابي، |
| Ferman etti: اَي۟نَ تُرٖيدُ؟ “Nereye gidiyorsun?”
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| | فقال: يا أعرابي: أين تريد؟ |
| Bedevî dedi: “Ehlime.”
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | قال: إلى أهلي. |
| Ferman etti: هَل۟ لَكَ اِلٰى خَي۟رٍ مِن۟ ذٰلِكَ؟ “Ondan daha iyi bir hayır istemiyor musun?”
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | قال: هل لك إلى خير؟ |
| Bedevî dedi: “Nedir?”
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | قال: وما هو؟ |
| Ferman etti:
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | قال: |
| اَن۟ تَش۟هَدَ اَن۟ لَٓا اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ وَح۟دَهُ لَا شَرٖيكَ لَهُ وَاَنَّ مُحَمَّدًا عَب۟دُهُ وَرَسُولُهُ
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | تشهد أن لا إله إلّا الله وحده لا شريك له وأن محمداً عبدُه ورسوله. |
| Bedevî dedi: “Bu şehadete şahit nedir?”
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | قال: مَن يشهد لك على ما تقول؟ |
| Ferman etti: هٰذِهِ الشَّجَرَةُ السَّمُرَةُ “Vâdi kenarındaki ağaç şahit olacak.”
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | قال: هذه الشجرةُ السَّمُرة، (<ref>(السَمُرة): شجرة عظيمة ذات شوكة من الطلح. (تخدّ): تشق.</ref>) وهي بشاطئ الوادي، |
| İbn-i Ömer der ki: O ağaç yerinden sallanarak çıktı, yeri şakketti, geldi; tâ Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâmın yanına. Üç defa, Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâm, o ağacı istişhad etti. Ağaç da sıdkına şehadet etti. Emretti yine yerine gidip yerleşti.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | فأقبلتْ تخدّ الأرضَ، حتى قامت بين يديه، فاستشهدها ثلاثاً فَشهِدت أنه كما قال. ثم رجعت إلى مكانها». (<ref>القاضي عياض، الشفا ١/ ٢٩٨- ٢٩٩؛ وانظر: الدارمي، المقدمة ٤؛ ابن حبان، الصحيح ١٤/ ٤٣٤؛ الطبراني، المعجم الكبير ١٢/ ٤٣١.</ref>) |
| Hazret-i Büreyde İbn-i Hasibi’l-Eslemî tarîkinde, nakl-i sahih ile Büreyde dedi ki: Biz, Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâmın yanında iken, bir seferde bir a’rabî geldi. Bir âyet, yani bir mu’cize istedi. Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâm ferman etti:
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | وعن بُريْدَة عن طريق ابن صاحب الأسلمي بنقل صحيح: «سأل أعرابي النبي ﷺ آيةً، فقال له: |
| قُل۟ لِتِل۟كَ الشَّجَرَةِ رَسُولُ اللّٰهِ يَد۟عُوكِ
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | قل لتلك الشجرة، رسولُ الله يدعوكِ. |
| Bir ağaca işaret etti. Ağaç sağa ve sola meylederek köklerini yerden çıkarıp huzur-u Nebevîye geldi.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | قال: فمالت الشجرة عن يمينها وشمالها وبين يديها وخلفها، فتقطعت عروقُها، ثم جاءت تَخدّ الأرض تَجرُّ عروقها مُغيّرة (<ref>(مغيّرة): مسرعة.</ref>) حتى وقفت بين يدي رسول الله ﷺ. |
| اَلسَّلَامُ عَلَي۟كَ يَا رَسُولَ اللّٰهِ dedi. Sonra a’rabî dedi: “Yine yerine gitsin.” Emretti, yerine gitti. A’rabî dedi: “İzin ver, sana secde edeyim.” Dedi: “İzin yok kimseye.” Dedi: “Öyle ise senin elini ayağını öpeceğim.” İzin verdi.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | فقالت: السلام عليك يا رسول الله. قال الأعرابي: مُرها فلترجع إلى منبتها، فَرَجَعَت فدلّت (<ref>(دلت عروقها): أدخلتها الارض.</ref>) عروقها فاستوت. فقال الأعرابي: ائذن لي أسجُد لك. قال: لو أمرتُ أحداً أن يسجُدَ لأحدٍ لأمرتُ المرأةَ أن تسجدَ لزوجها، قال: فأْذنْ لي أن أقبِّلَ يديك ورجليك، فأذِن له». (<ref>أبو نعيم، دلائل النبوة ٣٩٠؛ الحاكم، المستدرك ٤/ ١٩٠؛ ابن عساكر، تاريخ دمشق ٤/ ٣٦٥؛ الهيثمي، مجمع الزوائد ٩/ ١٠.</ref>) |
| === Üçüncü Misal: ===
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | <span id="Üçüncü_Misal:"></span> |
| Başta Sahih-i Müslim, kütüb-ü sahiha haber veriyorlar ki Câbir diyor: Biz bir seferde, Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâm ile beraberdik. Kaza-yı hâcet için bir yer aradı. Settareli bir yer yoktu. Sonra gitti, iki ağaç yanına. Bir ağacın dalını tuttu, çekti. Ağaç itaat ederek beraber gitti, öteki ağacın yanına getirdi. Mutî devenin yularını tutup çekildikte geldiği gibi o iki ağacı o suretle yan yana getirdi. Sonra dedi:
| | === المثال الثالث: === |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | روى مسلم وأصحابُ الكتب الصحاح الأخرى عن جابر رضي الله عنه: أنه قال: كنا في سفر مع رسول الله، «ذهب رسولُ الله يقضي حاجته، فلم يَرَ شيئاً يستتر به، فإذا بشجرتين بشاطئ الوادي، فانطلق رسولُ الله ﷺ إلى إحداهما، فأخذ بغصنٍ من أغصانها، فقال: انقادي عليّ بإذن الله فانقادت معه كالبعير المخشوش (<ref>(المخشوش): البعير يجعل في انفه عود عليه حبل لينقاد.</ref>) الذي يصانع قائده، وذكر أنه فعل بالأخرى مثل ذلك حتى إذا كان بالمنصف (<ref>(المنصف): نصف الطريق.</ref>) بينهما، قال: التئما عليّ بإذن الله. فالتأمتا» |
| اِل۟تَئِمَا عَلَىَّ بِاِذ۟نِ اللّٰهِ
| | (<ref>مسلم، الزهد ٧٤؛ ابن حبان، الصحيح ١٤/ ٤٥٦؛ البيهقي، السنن الكبرى ١/ ٩٤؛ أبو نعيم، دلائل النبوة ٣٩٢-٣٩٣.</ref>) فجلس خلفها، وبعد أن قضى حاجته، أمر أن يعودَ كلٌّ منهما إلى مكانها. |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | <nowiki></nowiki> |
| Yani “Üstüme birleşiniz.” dedi. İkisi birleşerek settare oldular. Arkalarında kaza-yı hâcet ettikten sonra onlara emretti, yerlerine gittiler.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | <nowiki></nowiki> |
| İkinci bir rivayette, yine Hazret-i Câbir der ki bana emretti ki:
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | «وفي رواية أخرى، فقال: |
| يَا جَابِرُ قُل۟ لِهٰذِهِ الشَّجَرَةِ يَقُولُ لَكِ رَسُولُ اللّٰهِ:
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| اِل۟حَقٖى بِصَاحِبَتِكِ حَتّٰى اَج۟لِسَ خَل۟فَكُمَا
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | يا جابر! قل لهذه الشجرة: يقول لك رسول الله الحقي بصاحبتك حتى أجلس خلفكما |
| Yani “O ağaçlara de: Resulullah’ın hâceti için birleşiniz.” Ben öyle dedim, onlar da birleştiler. Sonra ben beklerken Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâm çıkageldi. Başıyla sağa sola işaret etti, o iki ağaç yerlerine gittiler.
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | فزحفت حتى لحقت بصاحبتها. فجلس خلفهما، فخرجتُ أحضر، (<ref>(أحضر): أسرع في العدو.</ref>) وجلستُ أحدّث نفسي، فالتفتُّ فإذا رسولُ الله ﷺ مقبلاً، والشجرتان قد افترقتا، فقامت كل واحدة منهما على ساق، فوقف رسول الله ﷺ وقفةً فقال برأسه هكذا يميناً وشمالاً». (<ref>الدارمي، المقدمة ٤؛ عبد بن حميد، المسند ٣٢٠؛ ابن أبي شيبة، المسند ٦/ ٣٢١؛ البيهقي، السنن الكبرى ١/ ٩٣.</ref>) |
| === Dördüncü Misal: ===
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | <span id="Dördüncü_Misal:"></span> |
| Nakl-i sahih ile Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâmın cesur kumandanlarından ve hizmetkârlarından olan Üsame Bin Zeyd der ki: Bir seferde, Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâm ile beraberdik. Kaza-yı hâcet için hâlî, settareli bir yer bulunmuyordu. Ferman etti ki: هَل۟ تَرٰى مِن۟ نَخ۟لٍ اَو۟ حِجَارَةٍ
| | === المثال الرابع: === |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | روى أسامة بن زيد -أحد قواد رسول الله ﷺ وخادمه الأيمن-: كنّا في سفر مع رسول الله ﷺ، ولم يكن لقضاء الحاجة مكانٌ خالٍ يستر عن أعين الناس، فقال: «هل ترى من نخلٍ أو حجارة؟ |
| Dedim: “Evet var.” Emretti ve dedi:
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | قلت: أرى نخلات متقاربات، قال: |
| اِن۟طَلِق۟ وَقُل۟ لَهُنَّ اِنَّ رَسُولَ اللّٰهِ يَأ۟مُرُكُنَّ اَن۟ تَا۟تٖينَ لِمَخ۟رَجِ رَسُولِ اللّٰهِ وَقُل۟ لِل۟حِجَارَةِ مِث۟لَ ذٰلِكَ
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | انطلق وقل لهُنّ إن رسول الله ﷺ يأمركن أن تأتين لمخرج (<ref>(مخرج): مكان خرج إليه لقضاء حاجته فيه.</ref>) رسول الله ﷺ وقل للحجارة مثل ذلك. |
| Yani ağaçlara de ki: “Resulullah’ın hâceti için birleşiniz.” ve taşlara da de: “Duvar gibi toplanınız.” Ben gittim, söyledim. Kasem ediyorum ki ağaçlar birleştiler ve taşlar duvar oldular. Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâm, hâcetinden sonra yine emretti: قُل۟ لَهُنَّ يَف۟تَرِق۟نَ
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| </div> | |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | فقلت ذلك لهن، فوالذي بعثَه بالحق لقد رأيتُ النخلاتِ يتقاربن حتى اجتمعن والحجارةَ يتعاقدن حتى صرن ركاماً (<ref>(ركاماً): بعضها فوق بعض.</ref>) خلفَهن، فلما قضى حاجته، قال لي: قل لهن يفترقن، |
| Benim nefsim kabza-i kudretinde olan Zat-ı Zülcelal’e kasem ederim, ağaçlar ve taşlar ayrılıp yerlerine gittiler.
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| </div> | |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | فوالذي نفسي بيده لرأيتُهن والحجارةُ يفترقن حتى عُدن إلى مواضعهن». (<ref>البيهقي، دلائل النبوة ٦/ ٢٥؛ أبو نعيم، دلائل النبوة ٣٩٣، ٣٩٤؛ ابن حجر، المطالب العالية ٤/ ٩-١٠</ref>) |
| Şu Hazret-i Câbir ve Üsame’nin beyan ettiği iki hâdiseyi, aynen Ya’lâ İbn-i Murre ve Gaylan İbn-i Selemeti’s-Sakafî ve Hazret-i İbn-i Mesud, Gazve-i Huneyn’de aynen haber veriyorlar.
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| </div> | |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | وقد روى هاتين الحادثتين اللتين رواهما جابر وأسامة كلٌّ من يعلى بن مرة، وغيلان بن سلمة الثقفي، وابن مسعود في غزوة حُنين. |
| === Beşinci Misal: ===
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | <span id="Beşinci_Misal:"></span> |
| İmam-ı İbn-i Fûrek ki kemal-i içtihad ve fazlından kinaye olarak Şafiiyy-i Sânî unvanını alan allâme-i asr, kat’î haber veriyor ki: Gazve-i Taif’te, Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâm gece at üstünde giderken uykusu geliyordu. O halde iken bir sidre ağacına rast geldi. Ağaç ona yol verip atını incitmemek için iki şakk oldu. Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâm, hayvan ile içinden geçti. Tâ zamanımıza kadar o ağaç, iki ayak üstünde, muhterem bir vaziyette kaldı.
| | === المثال الخامس: === |
| </div> | |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | ذكر علامة عصره الإمام ابن فورك -الذي كان يسمى بالشافعي الثاني كناية عن اجتهاده الكامل وفضله-: «أنه ﷺ سار في غزوة الطائف ليلاً وهو وَسِنٌ، (<ref>(الوسن): قريب من النعاس.</ref>) فاعتَرضهُ سدرةٌ، (<ref>(سدرة): من أسماء الأشجار.</ref>) فانفرجت له نصفين حتى جاز بينهما، وبقيت على ساقين إلى وقتنا». (<ref>القاضي عياض، الشفا ١/ ٣٠١، ٣٠٢؛ علي القاري، شرح الشفا ١/ ٦٢٠؛ الخفاجي ٣/ ٥٧.</ref>) |
| === Altıncı Misal: ===
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| </div> | |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | <span id="Altıncı_Misal:"></span> |
| Hazret-i Ya’lâ tarîkında –nakl-i sahih ile– haber veriyor ki: Bir seferde, talha veya semure denilen bir ağaç geldi, Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâmın etrafında tavaf eder gibi döndü. Sonra yine yerine gitti. Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâm ferman etti ki:
| | === المثال السادس: === |
| </div> | |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | ذكر يعلى بن سيابه: «أن طلحة أو سَمُرة جاءت فأطافت به ثم رجعت إلى منبتها فقال رسول الله ﷺ: |
| اِنَّهَا اِس۟تَأ۟ذَنَت۟ اَن۟ تُسَلِّمَ عَلَىَّ
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | إنها استأذنت أن تسلّم عليّ» |
| Yani “O ağaç, Cenab-ı Hak’tan istedi ki bana selâm etsin.”
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | أي استأذنت من رب العالمين. (<ref>أحمد بن حنبل، المسند ٤/ ١٧٣؛ عبد بن حميد، المسند ١٥٤؛ البيهقي، دلائل النبوة ٦/ ٢٣،٢٤؛ أبو نعيم، دلائل النبوة ٣٩١.</ref>) |
| === Yedinci Misal: ===
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| </div> | |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | <span id="Yedinci_Misal:"></span> |
| Muhaddisler nakl-i sahih ile İbn-i Mesud’dan beyan ediyorlar ki İbn-i Mesud dedi: Batn-ı Nahl denilen nam mevkide, Nusaybin ecinnileri ihtida için Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâma geldikleri vakit, bir ağaç o ecinnilerin geldiklerini haber verdi.
| | === المثال السابع: === |
| </div> | |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | روى الشيخان عن ابن مسعود رضي الله عنه: أنه قال: «آذنَت (<ref>(آذنت): اَعْلَمَتْ.</ref>) النبيَّ ﷺ بالجن ليلة استمعوا له شجرةٌ» وذلك حينما جاء جنّ نَصيبن في بطن النخل إلى النبي ﷺ للإسلام، فأعلَمَت شجرةٌ خبرَ مجيئهم النبيَّ. |
| Hem İmam-ı Mücahid, o hadîste İbn-i Mesud’dan nakleder ki: O cinniler bir delil istediler. Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâm bir ağaca emretti; yerinden çıkıp geldi, sonra yine yerine gitti. İşte cin taifesine bir tek mu’cize kâfi geldi.
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| </div> | |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | «وعن مجاهد عن ابن مسعود في هذا الحديث: أن الجن قالوا مَن يَشهَدُ لك؟ قال: هذه الشجرة» فأمر الشجرَةَ «تعالي يا شجرة! فجاءت تجرُّ عروقَها لها قعاقع». (<ref>(قعاقع): صوت السلاح. القاضي، عياض ١/ ٣٠١؛ القرطبي، الجامع لأحكام القرآن ١٩/ ٥.</ref>) |
| Acaba bu mu’cize gibi bin mu’cizat işiten bir insan imana gelmezse cinnîlerin يَقُولُ سَفٖيهُنَا عَلَى اللّٰهِ شَطَطًا tabir ettikleri şeytanlardan daha şeytan olmaz mı?
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | وهكذا، فقد كفت معجزةٌ واحدة طائفةَ الجن. أفلا يكون مَن يسمع ألف معجزة ومعجزة من أمثالها ثم يكابر ولا يؤمن أضلَّ من ذلك الشيطان الذي حدّث القرآن عنه بقول الجن: ﴿يَقُولُ سَف۪يهُنَا عَلَى اللّٰهِ شَطَطًا﴾ (الجن: ٤) ؟ |
| === Sekizinci Misal: ===
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | <span id="Sekizinci_Misal:"></span> |
| Sahih-i Tirmizî nakl-i sahih ile Hazret-i İbn-i Abbas’tan haber veriyorlar ki İbn-i Abbas dedi ki: Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâm bir a’rabîye ferman etti:
| | === المثال الثامن: === |
| </div> | |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | روى الترمذي عن ابن عباس رضي الله عنه أنه ﷺ قال لأعرابي: |
| اَرَاَي۟تَ اِن۟ دَعَو۟تُ هٰذَا ال۟عِذ۟قَ مِن۟ هٰذِهِ النَّخ۟لَةِ اَتَش۟هَدُ اَنّٖى رَسُولُ اللّٰهِ؟
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | «أرأيتَ إن دعوتُ هذا العِذق (<ref>(العذق): العرجون من النخلة.</ref>) من هذه النخلة أتشهد أنّي رسول الله؟ |
| “Ben, bu ağacın şu dalını çağırsam, yanıma gelse iman edecek misin?” “Evet.” dedi. Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâm çağırdı. O urcun, ağacının başından kopup Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâmın yanına atladı, geldi. Sonra emretti, yine yerine gitti.
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| </div> | |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | قال: نعم! فدعاه فجعل ينقز (<ref>(ينقز): يثبّ صعداً.</ref>) حتى أتاه فقال: ارجع، فعاد إلى مكانه». (<ref>الحاكم، المستدرك ٢/ ٦٧٦؛ البيهقي، دلائل النبوة ٦/ ١٥؛ السيوطي، الخصائص الكبرى ٢/ ٦٠؛ وانظر: الترمذي المناقب ٦؛ الدارمي، المقدمة ٤، البخاري، التاريخ الكبير ٣/ ٣.</ref>) |
| İşte bu sekiz misal gibi çok misaller var, çok tarîklerle nakledilmişler. Malûmdur ki yedi sekiz urgan toplansa kuvvetli bir halat olur. Binaenaleyh şu en meşhur sıddıkîn-ı sahabeden, böyle müteaddid tarîklerle ihbar edilen şu mu’cize-i şeceriye, elbette tevatür-ü manevî kuvvetindedir; belki tevatür-ü hakikidir. Zaten sahabeden sonra tabiînin eline geçtiği vakit, tevatür suretini alır. Hususan Buharî, Müslim, İbn-i Hibban, Tirmizî gibi kütüb-ü sahiha; tâ zaman-ı sahabeye kadar, o yolu o kadar sağlam yapmışlar ve tutmuşlar ki mesela Buharî’de görmek, aynı sahabeden işitmek gibidir.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | وهكذا، فهناك أمثلة غزيرة كالتي ذكرناها رُويت كلّها بطرق عديدة، ومن المعلوم أنه إذا اتحدت بضعةُ خيوط رفيعة صارت حبلا قوياً.. فمثل هذه المعجزة المتعلقة بالشجرة وقد رويت بطرق متعددة، وعن مشاهير الصحابة الكرام لابد أنها في قوة التواتر المعنوي، بل إنها متواترة تواتراً حقيقياً. ولا ريب أنها حينما انتقلت إلى التابعين أخذت طابعَ التواتر، لا سيما الطرق التي سلكها أصحابُ الصحاح كالبخاري ومسلم وابن حبان والترمذي وغيرهم، إنما هي طريق صحيحة لا شائبة فيها. بل إن رؤية أي حديث كان في البخاري إنما هو كاستماعه من الصحابة الكرام بعينهم. |
| Acaba o Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâma ağaçlar –misallerde göründüğü gibi– onu tanıyıp risaletini tasdik edip ona selâm ederek ziyaret edip emirlerini dinleyerek itaat ettiği halde, kendilerine insan diyen bir kısım camid, akılsız mahluklar; onu tanımazsa, iman etmezse kuru ağaçtan çok edna, odun parçası gibi ehemmiyetsiz, kıymetsiz olarak ateşe lâyık olmaz mı?
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| | تُرى إذا عَرفت الأشجارُ رسولَ الله ﷺ وعرَّفَته وصدَّقَتْ رسالتَه وسلّمت عليه، وزارته، وامتثلت أمره -كما رأينا في الأمثلة المذكورة آنفاً- فكيف لا يَعرف ولا يؤمن به ذلك البليد الجماد الذي يسمي نفسَه إنساناً؟ أليس هو عارٍ عن العقل والقلب؟ أفلا يكون أدنى من الشجر اليابس وأتفهَ من الحطب الذي لا يستحق إلّا إلقاءه في النار؟. |
| == ONUNCU İŞARET ==
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | <span id="ONUNCU_İŞARET"></span> |
| Şu mu’cize-i şeceriyeyi daha ziyade takviye eden, mütevatir bir surette nakledilen '''hanînü’l-ciz’''' mu’cizesidir.
| | == الإشارة العاشرة == |
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| | إنَّ الذي يؤيد هذه المعجزات المتعلقة بالشجرة هو معجزة حنين الجذع المنقولة نقلاً متواتراً. |
| Evet, Mescid-i Şerif-i Nebevîde kuru direğin büyük bir cemaat içinde, muvakkaten firak-ı Ahmedîden (asm) ağlaması; beyan ettiğimiz mu’cize-i şeceriyenin misallerini hem teyid eder hem kuvvet verir. Çünkü o da ağaçtır, cinsi birdir. Fakat şunun şahsı mütevatirdir, öteki kısımlar her birinin nev’i mütevatirdir. Cüz’iyatları, misalleri çoğu sarîh tevatür derecesine çıkmıyor.
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| | نعم، إنَّ حنين الجذع اليابس الموجود في المسجد النبوي إلى رسول الله ﷺ لفراقه عنه -فراقاً مؤقتاً- وأنينَه أمام جماعةٍ غفيرة من الصحب الكرام يؤيد الأمثلة التي أوردناها في المعجزات المتعقلة بالأشجار ويقوّيها. لأن الجذع من جنس الأشجار، فالجنسُ واحد، إلّا أن هذه المعجزة متواترةٌ بالذات، بينما الأقسام الأخرى متواترة نوعاً، إذ إنَّ أكثرَ جزئياتها وأمثلتِها لا يرقى إلى مستوى التواتر الصريح. |
| Evet, Mescid-i Şerifte hurma ağacından olan kuru direk, Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâm hutbe okurken ona dayanıyordu. Sonra minber-i şerif yapıldığı vakit, Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâm minbere çıkıp hutbeye başladı. Okurken direk deve gibi enîn edip ağladı, bütün cemaat işitti. Tâ Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâm yanına geldi, elini üstüne koydu. Onunla konuştu, teselli verdi; sonra durdu. Şu mu’cize-i Ahmediye aleyhissalâtü vesselâm pek çok tarîklerle, tevatür derecesinde nakledilmiştir.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | كان المسجد النبوي مسقوفاً على جذوع نخل فكان النبي ﷺ إذا خطبَ يقوم إلى جذع منها، فلما صُنِع له المنبر، وكان عليه، سُمع لذلك الجذع صوتٌ كصوت العشار (<ref>(العشار): النوق الحوامل.</ref>) وهو يئن ويبكي، حتى جاءه النبي ﷺ ووضع يده عليه، وتكلّم معه وعزّاه وسلّاه، فسكت الجذع. نُقلت هذه المعجزة بطرق كثيرة جداً نقلاً متواتراً. |
| Evet, hanînü’l-ciz’ mu’cizesi çok münteşir ve meşhur ve hakiki mütevatirdir. Sahabelerin bir cemaat-i âlîsinden, on beş tarîk ile gelip tabiînin yüzer imamları o mu’cizeyi, o tarîklerle arkadaki asırlara haber vermişler. Sahabenin o cemaatinden ulema-i sahabe namdarları ve rivayet-i hadîsin reislerinden Hazret-i Enes İbn-i Mâlik (hâdim-i Nebevî), Hazret-i Câbir Bin Abdullahi’l-Ensarî (hâdim-i Nebevî), Hazret-i Abdullah İbn-i Ömer, Hazret-i Abdullah Bin Abbas, Hazret-i Sehl Bin Sa’d, Hazret-i Ebu Saidi’l-Hudrî, Hazret-i Übeyy İbni’l-Kâ’b, Hazret-i Büreyde, Hazret-i Ümmü’l-Mü’minîn Ümm-ü Seleme gibi meşahir-i ulema-i sahabe ve rivayet-i hadîsin rüesaları gibi her biri bir tarîkın başında, aynı mu’cizeyi ümmete haber vermişler. Başta Buharî, Müslim, kütüb-ü sahiha; arkalarındaki asırlara, o mütevatir mu’cize-i kübrayı tarîkleriyle haber vermişler.
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| | نعم، إنَّ معجزة حنين الجذع مشهورةٌ ومنتشرة، والخبر بها من المتواتر الصريح، فقد رواها مئاتٌ من أئمة التابعين بخمسة عشر طريقاً عن جماعة من الصحابة الكرام رضوان الله تعالى عليهم أجمعين، وهكذا نقلوها إلى مَن خلفهم. وممن رواها من علماء الصحابة: أنس بن مالك -خادم النبي- وجابر بن عبد الله الأنصاري، وعبد الله بن عمر، وعبد الله بن عباس، وسهل بن سعد، وأبو سعيد الخدري، وأُبي بن كعب، وبُريدة، وأم المؤمنين أم سلمة رضوان الله عليهم وكلٌّ من هؤلاء على رأس طريق من طرق رواة الحديث. |
| İşte Hazret-i Câbir tarîkında der ki: Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâm hutbe okurken, Mescid-i Şerifte جِذ۟عُ النَّخ۟لِ denilen kuru direğe dayanıp okurdu. Minber-i şerif yapıldıktan sonra, minbere geçtiği vakit; direk tahammül edemeyerek, hamile deve gibi ses verip inleyerek ağladı.
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| | فقد روى البخاري ومسلم وغيرهما من أصحاب الصحاح هذه المعجزة الكبرى المتواترة ونقلوها إلينا. |
| Hazret-i Enes tarîkında der ki: Camus gibi ağladı, mescidi lerzeye getirdi.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | عن جابر رضي الله عنه، يقول: «كان المسجد مسقوفاً على جذوع من نخلٍ فكان النبي ﷺ إذا خطب يقوم إلى جذع منها، فلما صُنع له المنبرُ وكان عليه فسمعنا لذلك الجذع صوتاً كصوت العشار حتى جاء النبي ﷺ فوضع يدَه عليه فسكت» لم يتحمل الجذع فراقَه ﷺ. |
| Sehl İbn-i Sa’d tarîkında der: Hem onun ağlaması üzerine, halklarda ağlamak çoğaldı.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | وعن أنس: «حتى ارتجّ المسجد لخُواره». (<ref>الترمذي، الجمعة ١٠، المناقب ٦؛ ابن ماجه، الاقامة ١٩٩؛ الدارمي، المقدمة ٦، الصلاة ٢٠٢؛ أحمد بن حنبل، المسند ١/ ٢٦٦</ref>) |
| Hazret-i Übeyy İbni’l-Kâ’b tarîkında diyor: Hem öyle ağladı ki inşikak etti.
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| </div> | |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | وعن سهل بن سعد: «وكَثُر بكاء الناس لمّا رأوا به من بكاء وحنين». (<ref>الدارمي، المقدمة ٦، الصلاة ٢٠٢؛ الطبراني، المعجم الكبير ١٦/ ١٩٤؛ ابن أبي شيبة، المصنف ٦/ ٣١٩؛ ابن سعد، الطبقات الكبرى ١/ ٢٥٠، ٢٥١.</ref>) |
| Diğer bir tarîkte, Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâm ferman etti:
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | وعن أُبَي بن كعب: «حتى تصدّع وانشق» لشدة بكائه. (<ref> |
| اِنَّ هٰذَا بَكٰى لِمَا فَقَدَ مِنَ الذِّك۟رِ
| | ابن ماجه، الاقامة، ١٩٩؛ الدارمي، المقدمة ٦؛ أحمد بن حنبل، المسند ٥/ ١٣٧، ١٣٨. |
| </div> | | </ref>) |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | زاد غيره: فقال النبي ﷺ: |
| Yani “Onun mevkiinde okunan zikir ve hutbedeki zikr-i İlahînin iftirakındandır ağlaması.”
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | «إنّ هذا بكى لِما فقَد من الذِّكر» |
| Diğer bir tarîkte ferman etmiş:
| | (<ref>انظر: البخاري، ٣/ ١٣١٤؛ أحمد بن حنبل، المسند ٣/ ٣٠٠؛ ابن أبي شيبة، المصنف ٦/ ٣١٩.</ref>) |
| </div> | |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | <nowiki></nowiki> |
| لَو۟ لَم۟ اَل۟تَزِم۟هُ لَم۟ يَزَل۟ هٰكَذَا اِلٰى يَو۟مِ ال۟قِيَامَةِ تَحَزُّنًا عَلٰى رَسُولِ اللّٰهِ
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| </div> | |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | وزاد غيره: |
| Yani “Ben onu kucaklayıp teselli vermeseydim, Resulullah’ın iftirakından kıyamete kadar böyle ağlaması devam edecekti.”
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | «والذي نفسي بيده لو لم ألتزمه لم يزل هكذا إلى يوم القيامة» تحزّناً على رسول الله ﷺ. (<ref>القاضي عياض، الشفا ١/ ٢٢٨؛ ابن سيد الناس، عيون الأثر ١/ ٣٧٥؛ الحلبي، السيرة الحلبية ٢/ ٣٦٦؛ وانظر: ابن ماجه، الاقامة ١٩٩؛ الدارمي، المقدمة ٦، الصلاة ٢٠٢؛ أحمد بن حنبل، المسند ٣/ ٣٠٦.</ref>) |
| Hazret-i Büreyde tarîkında der ki: Ciz’ ağladıktan sonra Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâm, elini üstüne koyup ferman etti:
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| </div> | |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | <nowiki></nowiki> |
| اِن۟ شِئ۟تَ اَرُدُّكَ اِلَى ال۟حَائِطِ الَّذٖى كُن۟تَ فٖيهِ تَن۟بُتُ لَكَ عُرُوقُكَ وَيَك۟مُلُ خَل۟قُكَ وَيُجَدَّدُ خُوصُكَ وَثَمَرُكَ وَاِن۟ شِئ۟تَ اَغ۟رِسُكَ فِى ال۟جَنَّةِ يَأ۟كُلُ اَو۟لِيَاءُ اللّٰهِ مِن۟ ثَمَرِكَ
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| </div> | |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | وفي حديث بُريدة: لما بكى الجذعُ وضع الرسولُ يدَه الشريفة عليه وقال: |
| Sonra o ciz’i dinledi ne söylüyor; ciz’ söyledi, arkadaki adamlar da işitti:
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | «إن شئتَ أردَّك إلى الحائط (<ref>(الحائط): البستان.</ref>) الذي كنتَ فيه، ينبت لك عروقُك ويكمل خلقُك ويجدّد لك خوصٌ وثمرةٌ. وإن شئتَ أغرسك في الجنة فيأكل أولياءُ الله من ثمرك. |
| اِغ۟رِس۟نٖى فِى ال۟جَنَّةِ يَأ۟كُلُ مِنّٖى اَو۟لِيَاءُ اللّٰهِ فٖى مَكَانٍ لَا يَب۟لٰى
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| </div> | |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | ثم أصغى له النبي ﷺ يستمع ما يقول، فقال: |
| Yani “Cennette beni dik ki benim meyvelerimden Cenab-ı Hakk’ın sevgili kulları yesin. Hem bir mekân ki orada beka bulup çürümek yoktur.” Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâm ferman etti: قَد۟ فَعَل۟تُ
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | بل تغرسني في الجنة فيأكل مني أولياءُ الله وأكون في مكان لا أُبلى فيه، |
| Sonra ferman etti:
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| اِخ۟تَارَ دَارَ ال۟بَقَاءِ عَلٰى دَارِ ال۟فَنَاءِ
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | فسمعه من يليه، فقال النبي ﷺ: قد فعلتُ. |
| İlm-i kelâmın büyük imamlarından meşhur Ebu İshak-ı İsferanî naklediyor ki: Resul-i Ekrem aleyhissalâtü vesselâm direğin yanına gitmedi; belki direk onun emriyle, onun yanına geldi. Sonra emretti, yerine döndü.
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| </div> | | ثم قال: اختار دارَ البقاء على دار الفناء». |
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| | قال الإمام أبو إسحاق الاسفرائني -وهو من أئمة علماء الكلام- أنَّ الرسول الأكرم ﷺ لم يذهب إلى الجذع بل «دعاه إلى نفسه فجاءه يخرِق الأرض فالتزمه. ثم أمره فعاد إلى مكانه». (<ref>القاضي عياض، الشفا ١/ ٣٠٤.</ref>) |
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