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| <span id="Lemaat"></span>
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| = اللوامع =
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| من بين هلال صوم وهلال العيد | | من بين هلال صوم وهلال العيد |
15. satır: |
12. satır: |
| بديع الزمان سعيد النّورسيّ | | بديع الزمان سعيد النّورسيّ |
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| تنبيه | | == تنبيه == |
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| إنّ هذا الديوان الموسوم بـ«اللوامع» لا يجري مجرى الدواوين الأخرى على نمط واحد متناولا عددا من المواضيع؛ ذلك لأن المؤلف المحترم قد وضح فيه المقولات البليغة المختصرة جدا لأحد مؤلفاته القديمة «نوى الحقائق»، ولأنه قد كتب على أسلوب النثرِ، زد على ذلك لا يجنح إلى الخيالات والانطلاق من أحاسيس غير موزونة، كما هو في سائر الدواوين. فلا يضم هذا الديوان بين دفتيه إلّا ما هو موزون بميزان المنطق وحقائق القرآن والإيمان. فهو درس علمي بل قرآني وإيماني ألقاه المؤلف على مسامع ابن أخيه وأمثاله من الطلاب الذين لازموه. ولقد اقتدى أستاذنا واستفاض من نور ﴿ وَمَا عَلَّمْنَاهُ الشِّعْرَ ﴾ فما كان له ميل إلى النظم والشعر ولم يشغل نفسه بهما أبدا، كما بيّنه في التنبيه المتصدر للأثر وأدركنا نحن أيضا منه هذا الأمر. | | إنّ هذا الديوان الموسوم بـ«اللوامع» لا يجري مجرى الدواوين الأخرى على نمط واحد متناولا عددا من المواضيع؛ ذلك لأن المؤلف المحترم قد وضح فيه المقولات البليغة المختصرة جدا لأحد مؤلفاته القديمة «نوى الحقائق»، ولأنه قد كتب على أسلوب النثرِ، زد على ذلك لا يجنح إلى الخيالات والانطلاق من أحاسيس غير موزونة، كما هو في سائر الدواوين. فلا يضم هذا الديوان بين دفتيه إلّا ما هو موزون بميزان المنطق وحقائق القرآن والإيمان. فهو درس علمي بل قرآني وإيماني ألقاه المؤلف على مسامع ابن أخيه وأمثاله من الطلاب الذين لازموه. ولقد اقتدى أستاذنا واستفاض من نور ﴿ وَمَا عَلَّمْنَاهُ الشِّعْرَ ﴾ فما كان له ميل إلى النظم والشعر ولم يشغل نفسه بهما أبدا، كما بيّنه في التنبيه المتصدر للأثر وأدركنا نحن أيضا منه هذا الأمر. |
447. satır: |
444. satır: |
| إلّا أن قسما منها اقترب من التوحيد، وسيجد فيه الفلاح. | | إلّا أن قسما منها اقترب من التوحيد، وسيجد فيه الفلاح. |
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| وهي الآن على وشك التمزق، (<ref>إشارة إلى النتائج الرهيبة للحرب العالمية الأولى، بل يخبر عن الحرب العالمية الثانية.(المؤلف).</ref>) إن لم تنطفئ فإنها تتصفّى وتكون مُلكَ الإسلام (إذ تجد نفسها أمام الحقائق الإسلامية الجامعة لأسس النصرانية الحقيقية).
| | وهي الآن على وشك التمزق، (<ref>إشارة إلى النتائج الرهيبة للحرب العالمية الأولى، بل يخبر عن الحرب العالمية الثانية.(المؤلف).</ref>) إن لم تنطفئ فإنها تتصفّى وتكون مُلكَ الإسلام (إذ تجد نفسها أمام الحقائق الإسلامية الجامعة لأسس النصرانية الحقيقية). |
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| هذا سر عظيم أشار إليه الرسول الكريم ﷺ بنـزول عيسى عليه السلام، وأنه سيكون من أمته ويعمل بشريعته. (<ref> | | هذا سر عظيم أشار إليه الرسول الكريم ﷺ بنـزول عيسى عليه السلام، وأنه سيكون من أمته ويعمل بشريعته. (<ref> |
1.792. satır: |
1.789. satır: |
| ففي دلالاته شمول وفي معناه سعة. فما أوسع هذا الميدان إن أطللت من هذه النافذة!. | | ففي دلالاته شمول وفي معناه سعة. فما أوسع هذا الميدان إن أطللت من هذه النافذة!. |
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| | الاستيعاب في الأحكام: هذه الشريعة الغراء قد اسُتنبطتْ منه، إذ قد تضمن طراز بيانه جميع دساتير سعادة الدارين، |
| '''Ahkâmdaki istiab:''' Şu hârika şeriat ondan olmuş istinbat. Saadet-i dâreynin bütün desatirini, bütün esbab-ı emni,
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| | ودواعي الأمن والاطمئنان، وروابط الحياة الاجتماعية، ووسائل التربية، وحقائق الأحوال. |
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| | استغراق علمه: لقد ضم ضمن سُورِ سُوَرِه العلومَ الكونية والعلوم الإلهية، مراتب ودلالات ورموزا وإشارات. |
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| | في المقاصد والغايات: لقد راعى الرعاية التامة في الموازنة والاطراد والمطابقة لدساتير الفطرة، والاتحاد في المقاصد والغايات، فحافَظَ على الميزان. |
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| | وهكذا، الجامعية الباهرة في إحاطة اللفظ وسعة المعنى واستيعاب الأحكام واستغراق العلم وموازنة الغايات. |
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| | أما العنصر الرابع: |
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| | فإفاضته النورانيةُ حسب درجة فهم كل عصر، ومستوى أدب كل طبقة من طبقاته وعلى وفق استعدادها ورتب قابليتها. |
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| | فبابُه مفتوح لكل عصر ولكل طبقة من طبقاته، حتى كأن ذلك الكلام الرحماني ينـزل في كل مكان في كل حين. |
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| | فكلما شاب الزمان شبّ القرآنُ وتوضحت رموزه. فذلك الخطيب الإلهي يمزق ستار الطبيعة وحجاب الأسباب فيفجّر نورَ التوحيد من كل آية، في كل وقت. |
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| | رافعا راية الشهادة شهادة التوحيد على الغيب. |
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| | إن علو خطابه يلفت نظر الإنسان ويدعوه إلى التدبّر؛ |
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| | إذ هو لسان الغيب يتكلم بالذات مع عالم الشهادة. |
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| | يخلص من هذا العنصر: أن شبابيته الخارقة شاملة محيطة، |
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| | وأنسيته جعلته محبوب الإنس والجان، وذلك بالتنـزلات الإلهية إلى عقول البشر لتأنيس الأذهان، والمتنوعة بتنوع أساليب التنـزيل. |
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| | أما المنبع الخامس: |
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| | فنُقولُه وأخبارُه في أسلوب بديع غزير المعاني، فينقل النقاط الأساس للأخبار الصادقة كالشاهد الحاضر لها. |
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| | ينقل هكذا لينبّه بها البشر. |
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| | ومنقولاته هي الآتية: أخبار الأولين وأحوال الآخرين، وأسرار الجنة والجحيم، |
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| | حقائق عالم الغيب، وأسرار عالم الشهادة، والأسرار الإلهية، والروابط الكونية. تلك الأخبار المشاهَدة شهود عيان حتى إنه لا يردّها الواقع ولا يكذّبها المنطق بل لا يستطيع ردّها أبدا ولو لم يدركها. |
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| | فهو مطمَح العالم في الكتب السماوية، |
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| | إذ ينقل الأخبار عنها مصدّقا بها في مظان الاتفاق، ويبحث فيها مصححا لها في مواضع الاختلاف. |
| İçtimaî hayatın bütün revabıtını, vesail-i terbiye, hakaik-i ahvali birden tazammun etmiş onun tarz-ı beyanı…
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| | ألا إنه لَمعجزة هذا الزمان أن يصدر مثل هذه الأمور النقلية من «أميّ»! |
| '''İlmindeki istiğrak:''' Hem ulûm-u kevniye hem ulûm-u İlahî, onda meratib-i delâlat, rumuz ile işarat, sureler surlarında cem’etmiştir cinanı.
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| | أما العنصر السادس: |
| '''Makasıd ve gayatta:''' Muvazenet, ıttırad, fıtrat desatirine mutabakat, ittihat; tamam müraat etmiş, hıfzeylemiş mizanı.
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| | فإنه مؤسس دين الإسلام ومتضمنه. ولن تجد مثلَ الإسلام إن تحريت الزمانَ والمكان، لا في الماضي ولا في المستقبل. |
| İşte lafzın ihatasında, mananın vüs’atinde, hükmün istiabında, ilmin istiğrakında, muvazene-i gayatta câmiiyet-i pür-şanı!..
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| | إنه حبل الله المتين، يمسك الأرض لئلا تفلت، ويديرها دورانا سنويا ويوميا. فلقد وضع وقاره وثقله على الأرض، وساسها وقادها وحال بينها وبين النفور والعصيان. |
| Dördüncü Unsur ise: Her asrın derece-i fehmine, edebî rütbesine hem her asırdaki tabakata, derece-i istidat, rütbe-i kabiliyet nisbetinde ediyor bir ifaza-i nurani.
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| | أما المنبع السابع: |
| Her asra, her asırdaki her tabakaya kapısı küşade. Güya her demde, her yerde taze nâzil oluyor o kelâm-ı Rahmanî.
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| | فإن الأنوار الستة المفاضة من هذه المنابع الستة يمتزج بعضها مع بعض، فيصدر شعاع حُسنٍ فائق، ويتولد حدس ذهني، وهو الوسيلة النورانية. |
| İhtiyarlandıkça zaman, Kur’an da gençleşiyor. Rumuzu hem tavazzuh eder, tabiat ve esbabın perdesini de yırtar o hitab-ı Yezdanî.
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| | والذي يصدر عن هذا: ذوق، يُدرَك به الإعجاز. |
| Nur-u tevhidi, her dem her âyetten fışkırır. Şehadet perdesini gayb üstünde kaldırır. Ulviyet-i hitabı dikkate davet eder, o nazar-ı insanı.
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| | لساننا يعجز عن التعبير عنه، والفكر يقصر دونه. |
| Ki o lisan-ı gaybdır; şehadet âlemiyle bizzat odur konuşur. Şu unsurdan bu çıkar hârika tazeliği bir ihata-i ummanî!
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| | فتلك النجوم السماوية تُشاهَد ولا تُستمسك. |
| Te’nis-i ezhan için akl-ı beşere karşı İlahî tenezzülat. Tenzil’in üslubunda tenevvüü munisliğidir mahbub-u ins ü cânı.
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| | طوال ثلاثة عشر قرنا من الزمان يحمل أعداء القرآن روح التحدي والمعارضة.. |
| '''Beşinci Menba ise:''' Nakil ve hikâyatında, ihbar-ı sadıkada esasî noktalardan hazır müşahit gibi bir üslub-u bedî-i pür-maânî
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| | وتولدت في أوليائه وأحبائه.. روح التقليد والشوق إليه. |
| Naklederek, beşeri onunla ikaz eder. Menkulatı şunlardır: İhbar-ı evvelîni, ahval-i âhirîni, esrar-ı cehennem ve cinanı.
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| | وهذا هو بذاته برهان للإعجاز، |
| Hakaik-i gaybiye hem esrar-ı şehadet, serair-i İlahî, revabıt-ı kevnîye dair hikâyatıdır hikâyet-i ayânî
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| | إذ كُتبت من جراء هاتين الرغبتين الشديدتين ملايين الكتب بالعربية، فلو قورنت تلك الملايينُ من الكتب مع القرآن الكريم، |
| Ki ne vaki reddeylemiş, ne mantık tekzip etmiş. Mantık kabul etmezse red de bile edemez. Semavî kitapların ki matmah-ı cihanî.
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| | لقال كلُ من يشاهد ويسمع، حتى أكثر الناس عامية، دونك الذكي الحكيم: إنّ هذه الكتب بشرية.. وهذا القرآن سماوي. |
| İttifakî noktalarda musaddıkane nakleder. İhtilafî yerlerinde musahhihane bahseder. Böyle naklî umûrlar bir “Ümmi”den sudûru hârika-i zamanî…
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| | وسيحكم حتما: إنّ هذه الكتب كلها لا تشبه هذا القرآن ولا تبلغ شأوه قطعا. |
| '''Altıncı Unsur ise:''' Mutazammın ve müessis olmuş din-i İslâm’a. İslâmiyet misline ne mazi muktedirdir, ne müstakbel muktedir; araştırsan zaman ile mekânı!..
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| | لذا فإما أنه أدنى من الكل. وهذا معلوم البطلان وظاهر بالبداهة. إذن فهو فوق الكل. |
| Arzımızı senevî, yevmî dairesinde şu hayt-ı semavîdir; tutmuş da döndürüyor. Küreye ağır basmış hem dahi ona binmiş. Bırakmıyor isyanı.
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| | ولقد فتح أبوابه على مصراعيه للبشر ونشر مضامينه أمامهم طوال هذه المدة الطويلة. ودعا لنفسه الأرواح والأذهان. |
| '''Yedinci Menba ise:''' Şu altı menbadan çıkan envar-ı sitte, birden eder imtizaç. Ondan çıkar bir hüsün, bundan gelir bir hads, vasıta-i nurani.
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| | ومع هذا لم يستطع البشر معارضته، ولا يمكنهم ذلك. فلقد انتهى زمن الامتحان. |
| Şundan çıkan bir zevktir; zevk-i i’caz bilinir, tabirine lisanımız yetişmez. Fikir dahi kāsırdır, görünür de tutulmaz o nücum-u âsumanî.
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| | إن القرآن لا يقاس بسائر الكتب ولا يشبهها قطعا. إذ نزل في عشرين سنة ونيف نجما نجما -لحكمة ربانية- لمواقع الحاجات نزولا متفرقا متقطعا، |
| On üç asır müddette meylü’t-tahaddî varmış Kur’an’ın a’dasında, şevk-i taklit uyanmış Kur’an’ın ahbabında. İşte i’cazın bir bürhanı…
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| | ولأسباب نـزول مختلفة متباينة، وجوابا لأسئلة مكررة متفاوتة، وبيانا لحادثات أحكام متعددة متغايرة، وفي أزمان نـزول مختلفة متفارقة، |
| Şu iki meyl-i şeditle yazılmıştır meydanda, milyonlarla kütüb-ü Arabiye, gelmiştir kütüphane-i vücuda. Onlar ile Tenzil’i düşerse bir mizanı
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| | وفي حالات تَلَقٍّ متنوعة متخالفة. |
| Muvazene edilse, değil dânâ-i bîmüdânî, hattâ en âmî adam, göz kulakla diyecek: Bunlar ise insanî, şu ise âsumanî!
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| | ولأفهامِ مخاطبين متعددة متباعدة. ولغايات إرشاداتٍ متدرجة متفاوتة. |
| Hem de hükmedecek: Şu bunlara benzemez, rütbesinde olamaz. Öyle ise ya umumdan aşağı; bu ise bilbedahe malûm olmuş butlanı.
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| | وعلى الرغم من هذه الأسس فقد أظهر كمال السلاسة والسلامة والتناسب والتساند في بيانه وجوابه وخطابه، ودونك علم البيان وعلم المعاني. |
| Öyle ise umumun fevkindedir. Mazmunları o kadar zamanda, kapı açık, beşere vakfedilmiş; kendine davet etmiş ervah ile ezhanı!
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| | وفي القرآن خاصية لا توجد في أي كلام آخر، لأنك إذا سمعت كلاما من أحدٍ فإنك ترى صاحب الكلام خلفه أو فيه فالأسلوب مرآة الإنسان. |
| Beşer onda tasarruf, kendine de mal etmiş. Onun mazmunları ile yine Kur’an’a karşı çıkmamış, hiçbir zaman çıkamaz; geçti zaman-ı imtihanı.
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| | أيها السائل المثالي! لقد أردت الإعجاز، وها قد أشرتُ إليه. وإن شئت التفصيل، فذلك فوق حدّي وطوقي، أَتَقْدر الذبابة مشاهدة السماوات؟ |
| Sair kitaplara benzemez, onlara makîs olmaz; zira yirmi sene zarfında müneccemen hâcetlere nisbeten nüzulü; müteferrik mütekatı’, bir hikmet-i Rabbanî.
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| | وقد بيّن كتاب «إشارات الإعجاز» واحدا من أربعين نوعا من ذلك الإعجاز، ولم تفِ مائة صفحة من تفسير لبيان نوع واحد. |
| Esbab-ı nüzulü muhtelif, mütebayin. Bir maddede es’ile mütekerrir, mütefavit. Hâdisat-ı ahkâmı müteaddid, mütegayir. Muhtelif, mütefarık nüzulünün ezmanı.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | بل أنا الذي أريد منك التفصيل، فقد تفضّل المولى عليك بفيضٍ من إلهامات روحية. |
| Hâlât-ı telakkisi mütenevvi, mütehalif. Aksam-ı muhatabı müteaddid, mütebaid. Gayat-ı irşadında mütederric, mütefavit. Şu esaslara müstenid binaı hem beyanı,
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | <nowiki>*</nowiki> * * |
| Cevabı hem hitabı. Bununla da beraber selaset ve selâmet, tenasüp ve tesanüd, kemalini göstermiş; işte onun şahidi: Fenn-i beyan maânî.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | <span id="اُولَاش۟مَاز۟_دَس۟تِ_أَدَبِ_غَر۟بِ_هَوَس۟بَارِ_هَوَاكَارِ_دَهَادَار۟"></span> |
| Kur’an’da bir hâssa var; başka kelâmda yoktur. Bir kelâmı işitsen, asıl sahib-i kelâmı arkasında görürsün, ya içinde bulursun. Üslup: Âyine-i insanî.
| | == لا تبلغ يد الأدب الغربي ذي الأهواء والنـزوات والدهاء.. == |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | شأن أدب القرآن الخالد ذي النور والهدى والشفاء. |
| Ey sâil-i misalî! Sen ki îcaz istedin, ben de işaret ettim. Eğer tafsil istersen, haddimin haricinde!.. Sinek seyretmez âsumanı.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | إذ الحالة التي ترضي الأذواق الرفيعة للكاملين من الناس وتُطمئنهم، لا تسرّ أصحاب الأهواء الصبيانية وذوي الطبائع السفيهة، |
| Zira o kırk enva-ı i’cazından yalnız bir tekini ki cezalet-i nazmıdır; İşaratü’l-İ’caz’da sıkışmadı tibyanı.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | ولا تسلّيهم، فبناءً على هذه الحكمة؛ |
| Yüz sahife tefsirim ona kâfi gelmedi. Senin gibi ruhanî ilhamları ziyade. Ben istiyorum senden tafsil ile beyanı!
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | فإن ذوقا سفيها سافلا، تَرعرع في حمأة الشهوة والنفسانية، لا يَستلذ بالذوق الروحي، ولا يعرفه أصلا. |
| <nowiki>*</nowiki> * *
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | فالأدب الحاضر؛ المترشح من أدب أوروبا، عاجز عن رؤية ما في القرآن الكريم من لطائف عالية ومزايا سامية، من خلال نظرته الروائية، |
| == اُولَاش۟مَاز۟ دَس۟تِ أَدَبِ غَر۟بِ هَوَس۟بَارِ هَوَاكَارِ دَهَادَار۟ ==
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | بل هو عاجز عن تذوقها، لذا لا يستطيع أن يجعل معياره محكّا له. |
| دَأ۟بِ أَدَب۟ أَبَد۟ مُدَّت۟ قُر۟اٰنِ ضِيَابَارِ شِفَاكَارِ هُدَادَار۟
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | والأدب يجول في ثلاثة ميادين، دون أن يحيد عنها: |
| Kâmilîn insanların zevk-i maâlîsini hoşnut eden bir halet, çocukça bir hevese, sefihçe bir tabiat sahibine hoş gelmez,
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | ميدان الحماسة والشهامة.. ميدان الحسن والعشق.. ميدان تصوير الحقيقة والواقع.. |
| Onları eğlendirmez. Bu hikmete binaen, bir zevk-i süflî, sefih hem nefsî ve şehvanî içinde tam beslenmiş, zevk-i ruhîyi bilmez.
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | فالأدب الأجنبي: |
| Avrupa’dan tereşşuh etmiş şu hazır edebiyat romanvari nazarla, Kur’an’da olan letaif-i ulviyet, mezaya-yı haşmeti göremez hem tadamaz.
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | في ميدان الحماسة؛ لا ينشد الحق، بل يلقّن شعور الافتتان بالقوة بتمجيده جَور الظالمين وطغيانهم. |
| Kendindeki miheki ona ayar edemez. Edebiyatta vardır üç meydan-ı cevelan; onlar içinde gezer, haricine çıkamaz:
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | وفي ميدان الحسن والعشق؛ |
| Ya aşkla hüsündür, ya hamaset ve şehamet, ya tasvir-i hakikat. İşte yabani edepse hamaset noktasında hakperestliği etmez.
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | لا يعرف العشقَ الحقيقي، بل يغرز ذوقا شهويا عارما في النفوس. |
| Belki zalim nev-i beşerin gaddarlıklarını alkışlamakla kuvvet-perestlik hissini telkin eder. Hüsün ve aşk noktasında, aşk-ı hakiki bilmez.
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | وفي ميدان تصوير الحقيقة والواقع؛ لا ينظر إلى الكائنات على أنها صنعة إلهية، |
| Şehvet-engiz bir zevki nefislere de zerkeder. Tasvir-i hakikat maddesinde, kâinata sanat-ı İlahî suretinde bakmaz,
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | ولا يراها صبغة رحمانية، بل يحصر همه في زاوية الطبيعة ويصور الحقيقة في ضوئها، ولا يقدر الفكاك منها.. لذا يكون تلقينه عشق الطبيعة، |
| Bir sıbga-i Rahmanî suretinde göremez. Belki tabiat noktasında tutar, tasvir ediyor hem ondan da çıkamaz.
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | وتأليه المادة، حتى يمكّن حبها في قرارة القلب، فلا ينجو المرء منه بسهولة. |
| Onun için telkini aşk-ı tabiat olur. Madde-perestlik hissi, kalbe de yerleştirir, ondan ucuzca kendini kurtaramaz.
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | ثم إن ذلك الأدب المشوب بالسفه، لا يغني شيئا عن اضطرابات الروح وقلقها الناشئة من الضلالة والواردة منه أيضا، ولربما يهدئها وينيّمها. |
| Yine ondan gelen, dalaletten neş’et eden ruhun ızdırabatına o edepsizlenmiş edep müsekkin hem münevvim; hakiki fayda vermez.
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | وفي حسبانه أنه قد وجد حلا، وكأن العلاج الوحيد، وهو رواياته. وهي: |
| Tek bir ilacı bulmuş, o da romanlarıymış. Kitap gibi bir hayy-ı meyyit, sinema gibi bir müteharrik emvat! Meyyit hayat veremez.
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| | في كتاب.. ذلك الحي الميت. |
| Hem tiyatro gibi tenasühvari, mazi denilen geniş kabrin hortlakları gibi şu üç nevi romanlarıyla hiç de utanmaz.
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| | وفي سينما.. وهي أموات متحركة. |
| Beşerin ağzına yalancı bir dil koymuş hem insanın yüzüne fâsık bir göz takmış, dünyaya bir âlüfte fistanını giydirmiş, hüsn-ü mücerred tanımaz.
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| | وفي مسرح.. الذي تبعث فيه الأشباح وتخرج سراعا من تلك المقبرة الواسعة المسماة بالماضي! |
| Güneşi gösterirse sarı saçlı, güzel bir aktrisi kārie ihtar eder. Zâhiren der: “Sefahet fenadır, insanlara yakışmaz.”
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| | هذه هي أنواع رواياته. |
| Netice-i muzırrayı gösterir. Halbuki sefahete öyle müşevvikane bir tasviri yapar ki ağız suyu akıtır, akıl hâkim kalamaz.
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| | وأنّى للميت أن يهب الحياة!.. |
| İştihayı kabartır, hevesi tehyic eder, his daha söz dinlemez. Kur’an’daki edepse hevayı karıştırmaz.
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| | وبلا خجل ولا حياء!.. وضع الأدب الأجنبي لسانا كاذبا في فم البشر.. وركّب عينا فاسقة في وجه الإنسان.. وألبس الدنيا فستانَ راقصةٍ ساقطة. |
| Hakperestlik hissi, hüsn-ü mücerred aşkı, cemal-perestlik zevki, hakikat-perestlik şevki verir hem de aldatmaz.
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| | فمن أين سيعرف هذا الأدب؛ الحسنَ المجرد؟! |
| Kâinata tabiat cihetinde bakmıyor; belki bir sanat-ı İlahî, bir sıbga-i Rahmanî noktasında bahseder, akılları şaşırtmaz.
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| | حتى لو أراد أن يُري القارئَ الشمسَ؛ فإنه يذكّره بممثلة شقراء حسناء. |
| Marifet-i Sâni’in nurunu telkin eder. Her şeyde âyetini gösterir. Her ikisi rikkatli birer hüzün de veriyor fakat birbirine benzemez.
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| | وهو في الظاهر يقول: «السفاهة عاقبتها وخيمة، لا تليق بالإنسان».. |
| Avrupazade edepse fakdü’l-ahbaptan, sahipsizlikten neş’et eden gamlı bir hüznü veriyor, ulvi hüznü veremez.
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| | ثم يبين نتائجها المضرة.. إلّا أنه يصورها تصويرا مثيرا إلى حد يسيل منه اللعاب، ويفلت منه زمام العقل، إذ يضرم في الشهوات، ويهيج النـزوات. |
| Zira sağır tabiat hem de bir kör kuvvetten mülhemane aldığı bir hiss-i hüzn-ü gamdar. Âlemi bir vahşetzar tanır, başka çeşit göstermez.
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| | حتى لا يعود الشعور ينقاد لشيء. |
| O surette gösterir hem de mahzunu tutar, sahipsiz de olarak yabaniler içinde koyar, hiçbir ümit bırakmaz.
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| | أما أدب القرآن الكريم: |
| Kendine verdiği şu hissî heyecanla gitgide ilhada kadar gider, tatile kadar yol verir, dönmesi müşkül olur, belki daha dönemez.
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| | فإنه لا يحرك ساكن الهوى، ولا يثيره، بل يمنح الإنسان الشعور بنشدان الحق وحبه، والافتتان بالحسن المجرد، وتذوّق عشق الجمال، والشوق إلى محبة الحقيقة.. ولا يخدع أبدا. |
| Kur’an’ın edebi ise öyle bir hüznü verir ki âşıkane hüzündür, yetimane değildir. Firaku’l-ahbaptan gelir, fakdü’l-ahbaptan gelmez.
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| | فهو لا ينظر إلى الكائنات من زاوية الطبيعة، بل يذكرها صنعة إلهية، صبغة رحمانية، دون أن يحير العقول. |
| Kâinatta nazarı, kör tabiat yerine şuurlu hem rahmetli bir sanat-ı İlahî onun medar-ı bahsi, tabiattan bahsetmez.
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| | فيلقّن نور معرفة الصانع.. ويبين آياته في كل شيء.. |
| Kör kuvvetin yerine inayetli, hikmetli bir kudret-i İlahî ona medar-ı beyan. Onun için kâinat, vahşetzar suret giymez.
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| | والأدَبان.. كلاهما يورثان حزنا مؤثرا. إلّا أنهما لا يتشابهان. |
| Belki muhatab-ı mahzunun nazarında oluyor bir cemiyet-i ahbap. Her tarafta tecavüb, her canibde tahabbüb; ona sıkıntı vermez.
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| | فما يورثه أدب الغرب هو حزن مهموم، ناشئ من فقدان الأحباب، وفقدان المالك. |
| Her köşede istînas, o cemiyet içinde mahzunu vaz’ediyor bir hüzn-ü müştakane, bir hiss-i ulvi verir, gamlı bir hüznü vermez.
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| | ولا يقدر على منح حزن رفيع سامٍ؛ إذ استلهام الشعور من طبيعة صماء، وقوة عمياء يملؤه بالآلام والهموم حتى يغدو العالم مليئا بالأحزان، |
| İkisi birer şevki de verir: O yabani edebin verdiği bir şevk ile nefis düşer heyecana, heves olur münbasit; ruha ferah veremez.
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| | ويلقي الإنسان وسط أجانب وغرباء دون أن يكون له حامٍ ولا مالك! فيظل في مأتمه الدائم... وهكذا تنطفئ أمامه الآمال. |
| Kur’an’ın şevki ise: Ruh düşer heyecana, şevk-i maâlî verir. İşte bu sırra binaen, şeriat-ı Ahmediye (asm) lehviyatı istemez.
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| | فهذا الشعور المليء بالأحزان والآلام يهيمن على كيان الإنسان، فيسوقه إلى الضلال، وإلى الإلحاد، وإلى إنكار الخالق.. حتى يصعب عليه العودة إلى الصواب، بل قد لا يعود أصلا. |
| Bazı âlât-ı lehvi tahrim edip, bir kısmı helâl diye izin verip… Demek, hüzn-ü Kur’anî veya şevk-i Tenzilî veren âlet, zarar vermez.
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| | أما أدب القرآن الكريم: فإنه يمنح حزنا ساميا علويا، ذلك هو حزن العاشق، لا حزن اليتيم.. هذا الحزن نابع من فراق الأحباب، لا من فقدانهم. |
| Eğer hüzn-ü yetimî veya şevk-i nefsanî verse âlet haramdır. Değişir eşhasa göre herkes birbirine benzemez.
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| | ينظر إلى الكائنات؛ على أنها صنعة إلهية، رحيمة، بصيرة بدلا من طبيعة عمياء. |
| <nowiki>*</nowiki> * *
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | بل لا يذكرها أصلا، وإنما يبين القدرة الإلهية الحكيمة، ذات العناية الشاملة، بدلا من قوة عمياء. |
| == Dallar semeratı rahmet namına takdim ediyor ==
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| Şecere-i hilkatin dalları her tarafta semerat-ı niamı zîruhun ellerine zâhiren uzatıyor.
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| | فلا تلبس الكائنات صورة مأتم موحش، بل تتحول -أمام ناظريه- إلى جماعة متحابّة، إذ في كل زاوية تجاوب. وفي كل جانب تحابب. وفي كل ناحية تآنس.. لا كدر ولا ضيق... |
| Hakikatte bir yed-i rahmet, bir dest-i kudrettir ki o semeratı, o dalları içinde sizlere uzatıyor.
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| | هذا هو شأن الحزن العاشقي. |
| O yed-i rahmeti, siz de şükür ile öpünüz. O dest-i kudreti de minnetle takdis ediniz.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | وسط هذا المجلس يستلهم الإنسان شعورا ساميا، لا حزنا يضيق منه الصدر. |
| <nowiki>*</nowiki> * *
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| | الأدبان.. كلاهما يعطيان شوقا وفرحا. |
| == Fatiha’nın âhirinde işaret olunan üç yolun beyanı ==
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| Ey birader-i pür emel! Hayalini ele al, benimle beraber gel. İşte bir zemindeyiz, etrafına bakarız; kimse de görmez bizi.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | فالشوق الذي يعطيه ذلك الأدب الأجنبي؛ شوق يهيج النفس، ويبسط الهوس.. دون أن يمنح الروح شيئا من الفرح والسرور؛ |
| Çadır direkleri hükmünde yüksek dağlar üstünde karanlıklı bir bulut tabakası atılmış hem o dahi kaplatmış zeminimizin yüzü.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | بينما الشوق الذي يهبه القرآن الكريم؛ شوق تهتز له جنبات الروح، فتعرج به إلى المعالي. |
| Müncemid bir sakf olmuş fakat alt yüzü açıkmış, o yüz güneş görürmüş. İşte bulut altındayız, sıkıyor zulmet bizi.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | وبناءً على هذا السر: فقد نهت الشريعة الغراء عن اللهو، وما يُلهي.. |
| Sıkıntı da boğuyor, havasızlık öldürür. Şimdi bize '''üç yol''' var: Bir âlem-i ziyadar, bir kere seyrettimdi bu zemin-i mecazî.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | فحرّمت بعض آلات اللهو، وأباحت أخرى. |
| Evet, bir kere buraya da gelmişim, üçünde ayrı ayrı gitmişim. '''Birinci yolu budur:''' Ekseri burdan gider; o da devr-i âlemdir, seyahate çeker bizi.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | بمعنى: أن الآلة التي تؤثر تأثيرا حزينا حزنا قرآنيا وشوقا تنـزيليا، لا تضر. |
| İşte biz de yoldayız, böyle yayan gideriz. Bak şu sahranın kum deryalarına, nasıl hiddet saçıyor, tehdit ediyor bizi!
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | بينما إن أثرت في الإنسان تأثيرا يتيميا وهيّجت شوقا نفسانيا شهويا، تحرم الآلة. |
| Bak şu deryanın dağvari emvacına! O da bize kızıyor. İşte elhamdülillah öteki yüze çıktık, görürüz güneş yüzü.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | تتبدل حسب الأشخاص هذه الحالة.. والناس ليسوا سواء. |
| Fakat çektiğimiz zahmeti ancak da biz biliriz. Of! Tekrar buraya döndük şu zemin-i vahşetzar, bulut damı zulmettar. Bize lâzım, revnaktar eder kalpteki gözü
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | <nowiki>*</nowiki> * * |
| Bir âlem-i ziyadar. Fevkalâde eğer bir cesaretin var; gireriz de beraber, bu yol-u pür-hatarkâr. '''İkinci yolumuzu:'''
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| </div> | |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | == الأغصان تقدم الثمرات باسم الرحمة الإلهية == |
| Tabiat-ı arzı deleriz, o tarafa geçeriz. Ya fıtrî bir tünelden titreyerek gideriz. Bir vakitte bu yolda seyrettim de geçtim bînaz ve pür-niyazî.
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | إن أغصان شجرة الخليقة تقدم ثمرات النعم وتوصلها ظاهرا إلى أيدي الأحياء في كل ناحية من أنحاء العالم. |
| Fakat o zaman tabiatın zemini eritecek, yırtacak bir madde var idi elimde. Üçüncü yolun o delil-i mu’cizi
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | بل تقدم إليكم تلك الثمراتِ بتلك الأغصان من يد الرحمة ويد القدرة. |
| Kur’an onu bana vermişti. Kardeşim, arkamı da bırakma, hiç de korkma! Bak hâ şurada tünelvari mağaralar, tahte’l-arz akıntılar beklerler ikimizi.
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | فقبِّلوا يد الرحمة تلك، بالشكر، |
| Bizi geçirecekler. Tabiat da şu müthiş cümudiyeleri de seni hiç korkutmasın. Zira bu abus çehresi altında merhametli sahibinin tebessümlü yüzü.
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | وقدّسوا يد القدرة تلك، بالامتنان. |
| Radyumvari o madde-i Kur’anî ışığıyla sezmiştim. İşte gözüne aydın! Ziyadar âleme çıktık, bak şu zemin-i pür-nâzı
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | <nowiki>*</nowiki> * * |
| Bu feza-yı latîf, şirin. Yahu başını kaldır! Bak semavata ser çekmiş, bulutları da yırtmış, aşağıda bırakmış. Davet ediyor bizi.
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| </div> | |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | == بيان الطرق الثلاث المشار إليها في ختام سورة الفاتحة == |
| Şu şecere-i tûba, meğer o Kur’an imiş. Dalları her tarafa uzanmış. Tedelli eden bu dala biz de asılmalıyız, oraya alsın bizi.
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | يا أخي! يا من امتلأ صدره بالأمل المشرق! أمسكْ خيالك في يدك، وتعال معي.. نحن الآن في أرض واسعة، ننظر إلى جوانبها، دون أن يرانا أحد، |
| O şecere-i semavî, bir timsali zeminde olmuş şer’-i enveri. Demek, zahmet çekmeden o yol ile çıkardık bu âlem-i ziyaya, sıkmadan zahmet bizi.
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | ولكن أُلقي علينا غيم أسود مظلم، فهبط على جبالٍ شُمٍّ، حتى غطى وجه أرضنا بالظلمات، بل كأنه سقف صلب كثيف.. |
| Madem yanlış etmişiz; eski yere döneriz, doğru yolu buluruz. Bak, '''üçüncü yolumuz''': Şu dağlar üstünde durmuş olan şehbazi
| | |
| </div> | | إلّا أنه سقفٌ تُرى الشمسُ من جهته الأخرى. |
| | |
| | ولكننا نحن تحت ذلك الغيم الكثيف، لا نكاد نطيق ضيق الظلمات، |
| | |
| | ويخنقنا الضجر والانقباض، ففقدان الهواء مميت!. |
| | |
| | وإذ نحن في هذه الحالة من الضيق الخانق انفتحت أمامنا ثلاث طرق تؤدي إلى ذلك العالم المضيء. ولقد أتيناه مرةً وشاهدناه من قبل. |
| | |
| | فمضينا من الطرق الثلاث، كل على انفراد: |
| | |
| | الطريق الأولى: معظم الناس يمرون منها، فهي سياحة حول العالم؛ والسياحة تشدّنا إليها.. |
| | |
| | فها نحن ندرج في الطريق نسير مشيا على الأقدام.. فها تجابهنا بحار الرمال في هذه الصحراء الواسعة.. انظر كيف تغضب علينا. وتستطير غيظا وتزجرنا زجرا.. |
| | |
| | وانظر إلى أمواجٍ كالجبال لهذا البحر العظيم.. إنها تحتد علينا وها نحن في الجهة الأخرى.. والحمد لله. نتنفس الصعداء.. نرى وجه الشمس المضيء. |
| | |
| | ولكن لا أحد يقدّر مدى ما قاسينا
من أتعاب وآلام. |
| | |
| | ولكن وا أسفى! لقد رجعنا مرة ثانية إلى هذه الأرض الموحشة التي أطبقت عليها الغيوم بالظلمات ونحن أحوج ما نكون إلى عالم مضيء يفتح بصيرتنا. |
| | |
| | إن كنت ذا شجاعة فائقة فرافقني في الطريق المليئة بالمخاطر، سنخوضها بشجاعة. |
| | |
| | وهي طريقنا الثانية: |
| | |
| | نثقب طبيعة الأرض، ننقب فيها لننفذ ونبلغ الجهة الأخرى. نمضي في أنفاق فطرية في الأرض والخوفُ يحيطنا.. |
| | |
| | فلقد شاهدتُ -في زمن ما- هذه الطريق ومضيت فيها بوجل واضطراب ولكن كانت في يدي آلة أو مادة تذيب أرض الطبيعة وتخرقها وتمهد السبيل.. |
| | |
| | تلك المادة أعطانيها القرآن الكريم في الطريق الثالثة. |
| | |
| | يا أخي! لا تتركني. اتبعني. لا تخف أبدا. انظر فها أمامك كهوف ومغارات كالأنفاق تحت الأرض، تنتظرنا وتسهّل لنا الطريق إلى الجهة الأخرى. |
| | |
| | لا تروّعك صلابة الطبيعة، فإن تحت ذلك الوجه العبوس القمطرير وجهَ مالكها الباسم. |
| | |
| | إن تلك المادة القرآنية مادة مشعة كالراديوم. |
| | |
| | بشراك يا أخي! فلقد خرجنا إلى العالم المنور.. انظر إلى الأرض الجميلة، والسماء اللطيفة المزينة.. |
| | |
| | ألا ترفع رأسك يا أخي لتشاهد هذا الذي غطى وجه السماء كلها وسما عليها وعلى الغيوم. إنه القرآن الكريم.. |
| | |
| | شجرة طوبى الجنة.. مدّت أغصانها إلى أرجاء الكون كله. وما علينا إلّا التعلق بهذا الغصن المتدلي والتشبث به، فهو بقربنا ليأخذنا إلى هناك.. |
| | |
| | إلى تلك الشجرة السماوية الرفيعة. |
| | |
| | إن الشريعة الغراء نموذج مصغر من تلك الشجرة المباركة. |
| | |
| | فلقد كان باستطاعتنا إذن بلوغُ ذلك العالم المضيء بتلك الطريق.. طريق الشريعة، من دون أن نرى صعوبة وكللا. |
| | |
| | بيد أننا أخطأنا السير. فلنرجع القهقرى إلى ما كنا فيه لنسلك الطريق المستقيم.. فانظر فها هي: |
| | |
| | طريقنا الثالثة: الداعية العظيم يقف منتصبا على هذه الشواهق الراسية.. |
| | |
| | إنه ينادي مؤذنا بـ«حيهلوا إلى عالم النور».. إنه يشترط علينا الدعاء والصلاة.. إنه المؤذن الأعظم محمد الهاشمي ﷺ. |
| | |
| | انظر إلى هذه الجبال.. |
| | |
| | جبال الهدى، وقد اخترقت الغيوم، إنها تناطح السماوات. |
| | |
| | وانظر إلى جبال الشريعة الشاهقة إنها جمّلت وجهَ أرضنا وأزهَرتها. |
| | |
| | وعلينا أن نحلّق بالهمة لنرى الضياء هناك ونرى نور الجمال. |
| | |
| | نعم، فها هنا.. أُحُد التوحيد.. ذلك الجبل الحبيب العزيز. |
| | |
| | وها هناك.. جوديُّ الإسلام.. ذلك الجبل الأشم.. جبل السلامة والاطمئنان. |
| | |
| | وها هو جبل القمر، القرآن الأزهر.. يسيل منه زلال النيل. فاشرب هنيئا ذلك الماء العذب السلسبيل. |
| | |
| | فتبارك الله أحسن الخالقين. |
| | |
| | وآخر دعوانا أن الحمد لله رب العالمين. |
| | |
| | فيا أخي! اطرحْ الآن الخيال، وتقلّد العقل. |
| | |
| | إن الطريقين الأوليين، هما طريق: «المغضوب عليهم والضالين» ففيهما مخاطر كثيرة، فهما شتاء دائم لا ربيع فيهما. |
| | |
| | بل ربما لا ينجو إلّا واحد من مائة شخص قد سلك فيهما.. كأفلاطون وسقراط. |
| | |
| | أما الطريق الثالثة: فهي سهلة قصيرة، لأنها مستقيمة، الضعيف والقوي فيها سيّان. والكل يمكنه أن يمضي فيها. |
| | |
| | أما أفضل الطرق وأسلمها فهو: أن يرزقك الله الشهادة أو شرف الجهاد. |
| | |
| | فها نحن الآن على عتبة النتيجة. |
| | |
| | إن الدهاء العلمي يسلك في الطريقين الأوليين. |
| | |
| | أما الهدى القرآني، وهو الصراط المستقيم، فهو الطريق الثالثة فهي التي تبلغنا هناك. |
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| | اللّهم ﴿ اِهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَق۪يمَۙ ❀ صِرَاطَ الَّذ۪ينَ اَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْۙ |
| | |
| | غَيْرِ الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلَا الضَّٓالّ۪ينَ ﴾ . آمين. |
| | |
| | <nowiki>*</nowiki> * * |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | == كل الآلام في الضلالة، وكل اللذائذ في الإيمان == |
| Hem de bütün cihana okuyor bir ezanı. Bak müezzin-i a’zama, Muhammedü’l-Hâşimî (asm) davet eder insanı âlem-i nur-u envere. İlzam eder niyaz ile namazı.
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | (حقيقة كبرى تزيّت بزي الخيال) |
| Bulutları da yırtmış, bak bu hüda dağlarına. Semavata ser çekmiş, bak şeriat cibaline. Nasıl müzeyyen etmiş zeminimizin yüzü gözü.
| |
| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | أيها الصديق الفطن! إن شئت أيها العزيز أن ترى الفرق الواضح بين «الصراط المستقيم» ذلك المسلك المنور «وطريق المغضوب عليهم والضالين» ذلك الطريق المظلم! |
| İşte çıkmalıyız buradan himmet tayyaresiyle. Ziya, nesîm orada; nur u cemal orada. İşte buradadır Uhud-u Tevhid, o cebel-i azizi.
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | تناول إذن يا أخي وهْمَك واركب متن الخيال. سنذهب سوية إلى ظلمات العدم، تلك المقبرة الكبرى المليئة بالأموات. |
| İşte şuradadır Cûdi-i İslâmiyet, o cebel-i selâmet. İşte Cebelü’l-Kamer olan Kur’an-ı Ezher, zülâl-i Nil akıyor o muhteşem menbadan. İç o âb-ı lezizi!..
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | إن القدير الجليل قد أخرجَنا من تلك الظلمات بيد قدرته، وأركبنا هذا الوجود، وأتى بنا إلى هذه الدنيا.. الخالية من اللذة الحقة. |
| فَتَبَارَكَ اللّٰهُ اَح۟سَنُ ال۟خَالِقٖينَ
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| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | فها نحن قد أتينا إلى هذا العالم، عالم الوجود.. هذه الصحراء الواسعة. وأعيُننا قد فُتحت فنظرْنا إلى الجهات الست، |
| وَ اٰخِرُ دَع۟وٰينَا اَنِ ال۟حَم۟دُ لِلّٰهِ رَبِّ ال۟عَالَمٖينَ
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| </div>
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| | وصوّبنا نظرنا إلى الأمام وإذا البلايا والآلام تريد الانقضاض علينا كالأعداء.. ففزعنا منها، وتراجعنا عنها. |
| Ey arkadaş! Şimdi hayali baştan çıkar, aklı kafaya geçir. Evvelki iki yolun, mağdub ve dâllîn yolu; hatarları pek çoktur, kıştır daim güz yazı.
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| | ثم نظرنا إلى اليمين والى الشمال مسترحمين العناصر والطبائع، |
| Yüzde biri kurtulur; Eflatun, Sokrat gibi. Üçüncü yol, sehildir hem karib-i müstakimdir. Zayıf, kavî müsavi. Herkes o yoldan gider. En rahatı budur ki şehit olmak ya gazi.
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| | فرأيناها قاسية القلوب لا رحمة فيها، وقد كشرت عن أسنانها تنظر إلينا بنظرات شزرة. لا تسمع دعاءً ولا تلين بكثرة التوسل. |
| İşte neticeye gireriz. Evet, deha-yı fennî: Evvelki iki yoldur ona meslek ve mezhep. Fakat hüda-yı Kur’anî: Üçüncü yoldur, onun sırat-ı müstakimi îsal eder o bizi.
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| | فرفعنا أبصارنا مضطرين إلى الأعلى مستمدين العون من الأجرام، ولكن رأيناها مرعبة مهيبة، تهددنا، |
| اَللّٰهُمَّ اِه۟دِنَا الصِّرَاطَ ال۟مُس۟تَقٖيمَ صِرَاطَ الَّذٖينَ اَن۟عَم۟تَ عَلَي۟هِم۟
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| | إذ إنها كالقذائف المنطلقة تسير بسرعة فائقة تجوب بها أنحاء الفضاء، من دون اصطدام، |
| غَي۟رِ ال۟مَغ۟ضُوبِ عَلَي۟هِم۟ وَ لَاالضَّٓالّٖينَ اٰمٖينَ
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| | يا تُرى لو أخطأتْ سيرها وضلّت، إذن لانفلق كبد العالم، عالم الشهادة. والعياذ بالله. أليس أمره موكولا إلى المصادفة، هل يأتي منها خير؟! |
| <nowiki>*</nowiki> * *
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| | فصرفنا أنظارنا عن هذه الجهة يائسين، ووقعنا في حيرة أليمة، وخفضنا رؤوسنا وفي صدورنا استترنا، ننظر إلى نفوسنا ونطالع ما فيها.. |
| == Hakiki bütün elem dalalette, bütün lezzet imandadır ==
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| '''Hayal libasını giymiş muazzam bir hakikat'''
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| | فإذا بنا نسمع ألوف صيحات الحاجات وألوف أنّات الفاقات، تنطلق كلها من نفوسنا الضعيفة. فنستوحش منها في الوقت الذي ننتظر منها السلوان، |
| Ey yoldaş-ı hüşdar! Sırat-ı müstakimin o meslek-i nurani, mağdub ve dâllînin o tarîk-i zulmanî, tam farklarını görmek eğer istersen ey aziz,
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| | لا جدوى إذن من هذه الجهة كذلك. |
| Gel vehmini ele al, hayal üstüne de bin, şimdi seninle gideriz zulümat-ı ademe. O mezar-ı ekberi, o şehr-i pür-emvatı bir ziyaret ederiz.
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| | لجأنا إلى وجداننا، نبحث عن دواء. ولكن وا أسفاه لا دواء. |
| Bir Kadîr-i Ezelî, kendi dest-i kudretle bu zulümat kıtadan bizi tuttu çıkardı, bu vücuda bindirdi, gönderdi şu dünyaya; şu şehr-i bîlezaiz.
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| | بل علينا وقع العلاج، إذ تجيش فيه ألوف الآمال والرغبات وألوف المشاعر والنـزعات، الممتدة إلى أطراف الكون.. تراجعنا مذعورين.. نحن عاجزون عن إغاثتها. |
| İşte şimdi biz geldik şu âlem-i vücuda, o sahra-yı hēile. Gözümüz de açıldı, şeş cihette biz baktık; evvel istîtafkârane önümüze bakarız.
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| | فلقد تزاحمت الآمال في الإنسان حتى امتدت أطرافها من الأزل إلى الأبد، بل لو ابتلعت الدنيا كلها لما شبعت. |
| Lâkin beliyyeler, elemler önümüzde düşmanlar gibi tehacüm eder. Ondan korktuk, çekindik. Sağa sola, anâsır-ı tabâyia bakarız, ondan meded bekleriz.
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| | وهكذا أينما ولّينا وجوهنا، قابَلَنا البلاء.. هذا هو طريق «الضالين والمغضوب عليهم» لأن النظر مصوّب إلى المصادفة والضلال. |
| Lâkin biz görüyoruz ki onların kalpleri kasiyye, merhametsiz. Dişlerini bilerler, hiddetli de bakarlar; ne naz dinler, ne niyaz!
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| | وحيث إننا قلّدنا ذلك المنظار، وقعنا في هذه الحال، ونسينا موقتا الصانع والحشر والمبدأ والمعاد. |
| Muztar adamlar gibi meyusane nazarı yukarıya kaldırdık. Hem istimdadkârane ecram-ı ulviyeye bakarız, pek dehşetli tehditkâr da görürüz.
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| | إنها أشد إيلاما للروح من جهنم وأشد إحراقا منها.. |
| Güya birer gülle bomba olmuşlar, yuvalardan çıkmışlar. Hem etraf-ı fezada pek süratli geçerler, her nasılsa ki onlar birbirine dokunmaz.
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| | فما جنينا من تلك الجهات الست إلّا حالة مركبة من خوف واندهاش وعجز وارتعاش وقلق واستيحاش مع يتم ويأس.. تلك التي تعصر الوجدان.. |
| Ger birisi yolunu kazara bir şaşırtsa, el-iyazü billah, şu âlem-i şehadet ödü de patlayacak. Tesadüfe bağlıdır, bundan dahi hayır gelmez.
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| | فلنحاول دفعها ولنجابهها.. |
| Meyusane nazarı o cihetten çevirdik, elîm hayrete düştük. Başımız da eğildi, sinemizde saklandık, nefsimize bakarız. Mütalaa ederiz.
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| | فنبدأ مقدما بالنظر إلى قدرتنا. فوا أسفاه! إنها عاجزة ضعيفة. |
| İşte işitiyoruz: Zavallı nefsimizden binlerle hâcetlerin sayhaları geliyor. Binlerle fâkatlerin enînleri çıkıyor. Teselliyi beklerken tevahhuş ediyoruz.
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| | ثم نتوجه إلى تطمين حاجات النفس العطشى، |
| Ondan da hayır gelmedi. Pek ilticakârane vicdanımıza girdik; içine bakıyoruz, bir çareyi bekleriz. Eyvah! Yine bulmayız, biz meded vermeliyiz.
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| | تصرخ دون انقطاع ولكن ما من مجيب ولا من مغيث لإسعاف تلك الآمال التي تستغيث! |
| Zira onda görünür binlerle emelleri, galeyanlı arzular, heyecanlı hissiyat, kâinata uzanmış. Her birinden titreriz, hiç yardım edemeyiz.
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| | فظننا كل ما حولنا أعداءً.. كل شيء غريب. فلا نستأنس بشيء، ولا شيء يبعث الاطمئنان.. فلا متعة ولا لذة حقيقية. |
| O âmâl sıkışmışlar vücud adem içinde; bir tarafı ezele, bir tarafı ebede uzanıp gidiyorlar. Öyle vüs’atleri var, ger dünyayı yutarsa o vicdan da tok olmaz.
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| | ومن بعد ذلك كلما نظرنا إلى الأجرام، امتلأ الوجدان خوفا وهلعا ووحشة، وامتلأت العقول أوهاما وريبا. |
| İşte bu elîm yolda nereye bir baş vurduk, onda bir bela bulduk. Zira mağdub ve dâllîn yolları böyle olur. Tesadüf ve dalalet, o yolda nazar-endaz.
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| | فيا أخي! هذه هي طريق الضلال. وتلك ماهيتها. فلقد رأينا فيها ظلام الكفر الدامس. |
| O nazarı biz taktık, bu hale böyle düştük. Şimdi dahi halimiz ki mebde ve meâdi hem Sâni’ ve hem haşri muvakkat unutmuşuz.
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| | هيا الآن يا أخي لنرجع إلى العدم، |
| Cehennemden beterdir, ondan daha muhriktir, ruhumuzu eziyor. Zira o şeş cihetten ki onlara baş vurduk. Öyle halet almışız.
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| | ثم لنَعُد منه، فطريقنا هذه المرة في «الصراط المستقيم» ودليلنا العناية الإلهية، وإمامُنا القرآن الكريم. |
| Ki yapılmış o halet hem havf ile dehşetten hem acz ile ra’şetten hem kalak ve vahşetten hem yütm ve hem yeisten mürekkeb vicdansûz.
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| | نعم، لما أرادنا المولى الكريم، أخرجتنا قدرتُه من العدم، رحمةً منه وفضلا. وأركَبَنا قانون المشيئة الإلهية، وسيّرنا على الأطوار والأدوار.. |
| Şimdi her cihete mukabil bir cepheyi alırız, def’ine çalışırız. '''Evvel''', kudretimize müracaat ederiz, vâ-esefâ görürüz
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| | ها قد أتى بنا، وخلع علينا خلعة الوجود وهو الرؤوف، وأكرمنا منـزلة الأمانة، شارتُها الصلاة والدعاء. |
| Ki âcize, zaîfe. '''Sâniyen:''' Nefiste olan hâcatın susmasına teveccüh ediyoruz. Vâ-esefâ durmayıp bağırırlar, görürüz.
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| | كل دور وطور منـزل من منازل الضعف في طريقنا الطويلة هذه، وقد كتَب القدر على جباهنا أوامره لتيسير أمورنا، |
| '''Sâlisen:''' İstimdadkârane, bir halâskârı için bağırır, çağırırız, ne kimse işitiyor, ne cevabı veriyor. Biz de zannediyoruz:
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| | فأينما حللنا ضيوفا نُستقبل بالترحاب الأخوي. نسلّمهم ما عندنا ونتسلّم من أموالهم.. هكذا تجري التجارة في محبة ووئام. |
| Her bir şey bize düşman, her bir şey bizden garib. Hiçbir şey kalbimize bir teselli vermiyor; hiç emniyet bahşetmez, hakiki zevki vermez.
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| | يغذّوننا، ثم يحمّلوننا بالهدايا، ويشيّعوننا.. هكذا سرنا في الطريق، حتى بلغنا باب الدنيا، نسمع منها الأصوات. |
| '''Râbian:''' Biz ecram-ı ulviyeye baktıkça onlar nazara verir bir havf ile dehşeti. Hem vicdanın müz’ici bir tevahhuş geliyor: Akılsûz, evhamsâz!
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| | وها قد أتيناها، ودخلناها، وطأت أقدامنا عالم الشهادة، معرض الرحمن، مشهر مصنوعاته، وموضع صخب الإنسان وضجيجه. |
| İşte ey birader! Bu dalaletin yolu, mahiyeti şöyledir. Küfürdeki zulmeti, bu yolda tamam gördük. Şimdi de gel kardeşim, o ademe döneriz.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | دخلناها ونحن جاهلون بكل ما حولنا، دليلنا وإمامنا مشيئة الرحمن، ووكيلها عيوننا اللطيفة. |
| Tekrar yine geliriz. Bu kere tarîkımız sırat-ı müstakimdir hem imanın yoludur. Delil ve imamımız, inayet ve Kur’an’dır, şehbaz-ı edvar-pervaz.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | ها قد فتحت عيونُنا، أجَلْناها في أقطار الدنيا.. أتذكر مجيئنا السابق إلى ههنا؟ |
| İşte Sultan-ı ezel’in rahmet ve inayeti, vaktâ bizi istedi, kudret bizi çıkardı, lütfen bizi bindirdi kanun-u meşiete: Etvar üstünde perdaz.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | كنا أيتاما غرباء، بين أعداء لا يعدّون من دون حامٍ ولا مولى. |
| Şimdi bizi getirdi, şefkat ile giydirdi şu hil’at-ı vücudu, emanet rütbesini bize tevcih eyledi. Nişanı niyaz ve namaz.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | أما الآن، فنور الإيمان «نقطة استناد» لنا، ذلك الركن الشديد تجاه الأعداء. |
| Şu edvar ve etvarın, bu uzun yolumuzda birer menzil-i nazdır. Yolumuzda teshilat içindir ki kaderden bir emirname vermiş, sahifede cephemiz.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | حقا، إن الإيمان بالله نور حياتنا، ضياء روحنا، روح أرواحنا، |
| Her nereye geliriz, herhangi taifeye misafir oluyoruz, pek uhuvvetkârane istikbal görüyoruz. Malımızdan veririz, mallarından alırız.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | فقلوبنا مطمئنة بالله لا تعبأ بالأعداء، بل لا تعدّهم أعداء. |
| Ticaret muhabbeti, onlar bizi beslerler, hediyelerle süslerler hem de teşyi ederler. Gele gele işte geldik, dünya kapısındayız, işitiyoruz âvâz.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | في الطريق الأولى، دخلنا الوجدان، سمعنا ألوف الصيحات والاستغاثات، ففزعنا من البلاء. |
| Bak girdik şu zemine, ayağımızı bastık şehadet âlemine: Şehrâyine-i Rahman, gürültühane-i insan. Hiçbir şey bilmeyiz, delil ve imamımız
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | إذ الآمال والرغبات والمشاعر والاستعدادات لا ترضى بغير الأبد. ونحن نجهل سبيل إشباعها. فكان الجهل منا، والصراخ منها. |
| Meşiet-i Rahman’dır. Vekil-i delilimiz, nâzenin gözlerimiz. Gözlerimizi açtık, dünya içine saldık. Hatırına gelir mi evvelki gelişimiz?
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | أما الآن، فلله الحمد والمنة، فقد وجدنا «نقطة استمداد» تبعث الحياة في الآمال والاستعدادات، وتسوقها إلى طريق أبد الآباد. |
| Garib, yetim olmuştuk; düşmanlarımız çoktu, bilmezdik hâmimizi. Şimdi nur-u iman ile o düşmanlara karşı bir rükn-ü metînimiz
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| | فيتشرب الاستعداد منها والآمال ماء الحياة، وكل يسعى لكماله. |
| İstinadî noktamız hem himayetkârımız def’eder düşmanları. O iman-ı billahtır ki ziya-yı ruhumuz hem nur-u hayatımız hem de ruh-u ruhumuz.
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| | فتلك النقطة المشوقة، «نقطة الاستمداد»، هي القطب الثاني من الإيمان، وهو الإيمان بالحشر. والسعادة الخالدة هي درّة ذلك الصدف. |
| İşte kalbimiz rahat, düşmanları aldırmaz, belki düşman tanımaz. Evvelki yolumuzda, vaktâ vicdana girdik; işittik ondan binlerle feryad u fîzar ve âvâz.
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| | إن برهان الإيمان هو القرآن والوجدان، ذلك السر الإنساني. |
| Ondan belaya düştük. Zira âmâl, arzular, istidat ve hissiyat; daim ebedi ister. Onun yolunu bilmezdik, bizden yol bilmemezlik, onda fîzar ve niyaz.
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| | إرفعْ رأسك يا أخي، وألق نظرة في الكائنات، وحاورها، أما كانت موحشة في طريقنا الأولى والآن تبتسم وتنشر البشر والسرور؟ |
| Fakat elhamdülillah, şimdi gelişimizde bulduk nokta-i istimdad, ki daim hayat verir o istidat, âmâle; tâ ebedü’l-âbâda onları eder pervaz.
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| | ألا ترى قد أصبحت عيوننا كالنحلة تطير إلى كل جهة في بستان الكون هذا، وقد تفتحت فيه الأزهار في كل مكان، وتمنح الرحيق الطهور. |
| Onlara yol gösterir, o noktadan istidat hem istimdad ediyor hem âb-ı hayatı içer hem kemaline koşuyor; o nokta-i istimdad, o şevk-engiz remz ü naz.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | ففي كل ناحية انس وسلوان، وفي كل زاوية محبة ووئام.. فهي ترتشف تلك الهدايا الطيبة، وتقطّر شهد الشهادة، عسلا على عسل. |
| İkinci kutb-u iman ki tasdik-i haşirdir. Saadet-i ebedî, o sadefin cevheri. İman bürhanı, Kur’an. Vicdan-ı insanî bir râz.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | وكلما وقعت أنظارنا على حركات النجوم والشموس، تسلِّمها إلى يد حكمة الخالق، فتستلهم العبرة وجلوة الرحمة. |
| Şimdi başını kaldır, şu kâinata bir bak, onun ile bir konuş. Evvelki yolumuzda pek müthiş görünürdü. Şimdi de mütebessim her tarafa gülüyor, nâzenînane niyaz ve âvâz.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | حتى كأن الشمس تتكلم معنا قائلة: |
| Görmez misin gözümüz arı-misal olmuştur, her tarafa uçuyor. Kâinat bostanıdır, her tarafta çiçekler, her çiçek de veriyor ona bir âb-ı leziz.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | «يا إخوتي! لا تستوحشوا مني ولا تضجروا! فأهلا وسهلا بكم. فقد حللتم أهلا ونـزلتم سهلا. أنتم أصحاب المنـزل، وأنا المأمور المكلف بالإضاءة لكم. |
| Hem ünsiyet, teselli, tahabbübü veriyor. O da alır, getirir; şehd-i şehadet yapar. Balda bir bal akıtır, o esrarengiz şehbaz.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | أنا مثلكم خادم مطيع سخرّني الأحد الصمد للإضاءة لكم، بمحض رحمته وفضله. فعليّ الإضاءة والحرارة وعليكم الدعاء والصلاة. |
| Harekât-ı ecrama ya nücum ya şümusa nazarımız kondukça ellerine verirler Hâlık’ın hikmetini. Hem mâye-i ibreti hem cilve-i rahmeti alır ediyor pervaz.
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| | فيا هذا! هلّا نظرت إلى القمر.. إلى النجوم.. إلى البحار.. كل يرحب بلسانه الخاص ويقول: حياكم وبياكم. فأهلا وسهلا بكم! |
| Güya şu güneş bizlerle konuşuyor, der: “Ey kardeşlerimiz! Tevahhuşla sıkılmayınız, ehlen sehlen merhaba, hoş teşrif ettiniz. Menzil sizin, ben bir mumdar-ı şehnaz.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | فانظر يا أخي بمنظار التعاون، واستمع بصماخ النظام، كل منها يقول: «نحن أيضا خدّام مسخرون. نحن مرايا رحمة الرحمن. لا نسأم من العمل أبدا. لا تتضايقوا منا». |
| Ben de sizin gibiyim fakat safi, isyansız, mutî bir hizmetkârım. O Zat-ı Ehad-i Samed ki mahz-ı rahmetiyle hizmetinize beni musahhar-ı pür-nur etmiş. Benden hararet, ziya; sizden namaz ve niyaz.”
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | فلا تخيفنكم نعرات الزلازل وصيحات الحوادث، فهي ترنمات الأذكار ونغمات التسبيحات، وتهاليل التضرعات.. |
| Yahu, bakın kamere! Yıldızlarla denizler her biri de kendine mahsus birer lisanla: “Ehlen sehlen merhaba!” derler. “Hoş geldiniz, bizi tanımaz mısınız?”
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | نعم، إنّ الذي أرسلكم إلى هنا، هو ذلك الجليل الجميل الذي بيده زمام كل أولئك.. إنّ عين الإيمان تقرأ في وجوهها آيات الرحمة. |
| Sırr-ı teavünle bak, remz-i nizamla dinle. Her birisi söylüyor: “Biz de birer hizmetkâr, rahmet-i Zülcelal’in birer âyinedarıyız; hiç de üzülmeyiniz, bizden sıkılmayınız.”
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| | أيها المؤمن يا ذا القلب اليقظ! ندع عيوننا لتخلد إلى شيء من الراحة، ونسلّم آذاننا للإيمان بدلا منها. ولنستمع من الدنيا إلى نغمات لذيذة.. |
| Zelzele na’raları, hâdisat sayhaları sizi hiç korkutmasın, vesvese de vermesin. Zira onlar içinde bir zemzeme-i ezkâr, bir demdeme-i tesbih, velvele-i naz u niyaz.
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| | فالأصوات التي كانت تتعالى في طريقنا السابقة -وظنناها أصوات مآتم عامة ونعيات الموت- هي أصوات أذكار في هذه الطريق وتسابيح وحمد وشكر. |
| Sizi bize gönderen o Zat-ı Zülcelal, ellerinde tutmuştur bunların dizginlerini. İman gözü okuyor yüzlerinde âyet-i rahmet, her biri birer âvâz.
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| | فترنمات الرياح ورعدات الرعود ونغمات الأمواج.. تسبيحات سامية جليلة وهزجات الأمطار وسجعات الأطيار.. تهاليل رحمة وعناية.. |
| Ey mü’min-i kalbi hüşyar! Şimdi gözlerimiz bir parça dinlensinler, onların bedeline hassas kulağımızı imanın mübarek eline teslim ederiz, dünyaya göndeririz. Dinlesin leziz bir saz.
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| | كلها مجازات تومئ إلى حقيقة. |
| Evvelki yolumuzda bir matem-i umumî hem vaveylâ-yı mevtî zannolunan o sesler, şimdi yolumuzda birer nevaz u namaz, birer âvâz u niyaz, birer tesbihe âğâz.
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| | نعم، إن صوت الأشياء، صدى وجودها، يقول: أنا موجود.وهكذا تنطق الكائنات كلها معا وتقول: أيها الإنسان الغافل! لا تحسبنا جامدات؛ |
| Dinle, havadaki demdeme, kuşlardaki civcive, yağmurdaki zemzeme, denizdeki gamgama, ra’dlardaki rakraka, taşlardaki tıktıka birer manidar nevaz…
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| | فالطيور تنطق، في تذوق نعمةٍ، أو نـزول رحمةٍ، فتزقزق بأصوات عذبة، بأفواه دقيقة ترحابا بنـزول الرحمة المهداة. حقا، النعمة تنـزل عليها، والشكر يديمها، |
| Terennümat-ı hava, naarat-ı ra’diye, nağamat-ı emvac, birer zikr-i azamet. Yağmurun hezecatı, kuşların seceatı birer tesbih-i rahmet, hakikate bir mecaz.
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| | وهي تقول رمزا: أيتها الكائنات! يا إخوتي! ما أطيب حالنا! ألا نُربَّى بالشفقة والرأفة.. نحن راضون عما نحن عليه من أحوال.. وهكذا تبث أناشيدها بمناقيرها الدقيقة، |
| Eşyada olan asvat, birer savt-ı vücuddur: Ben de varım derler. O kâinat-ı sâkit, birden söze başlıyor: “Bizi camid zannetme, ey insan-ı boşboğaz!”
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| | حتى تحول الكائنات كلها إلى موسيقى رفيعة. |
| Tuyûrları söylettirir ya bir lezzet-i nimet ya bir nüzul-ü rahmet. Ayrı ayrı seslerle, küçük âğâzlarıyla rahmeti alkışlarlar, nimet üstünde iner, şükür ile eder pervaz.
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| | إنّ نور الإيمان هو الذي يسمع أصداء الأذكار وأنغام التسابيح، حيث لا مصادفة ولا اتفاقية عشواء. |
| Remzen onlar derler: “Ey kâinat kardeşler! Ne güzeldir halimiz, şefkatle perverdeyiz, halimizden memnunuz.” Sivri dimdikleriyle fezaya saçıyorlar birer âvâz-ı pür-naz.
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| | أيها الصديق! ها نحن نغادر هذا العالم المثالي، ونقف على عتبة العقل وندخل ميدانه، لنـزن الأمور بميزانه كي نميّز الطرق المختلفة. |
| Güya bütün kâinat ulvi bir musikîdir, iman nuru işitir ezkâr ve tesbihleri. Zira hikmet reddeder tesadüf vücudunu, nizam ise tard eder ittifak-ı evhamsâz.
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| | فطريقنا الأولى: طريق المغضوب عليهم والضالين. تُورِث الوجدان حسا أليما وعذابا شديدا حتى في أعمق أعماقه، فتطفح تلك المشاعر المؤلمة إلى الوجوه، |
| Ey yoldaş! Şimdi şu âlem-i misalîden çıkarız, hayalî vehimden ineriz, akıl meydanında dururuz, mizana çekeriz, ederiz yolları ber-endaz.
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| | فنخادع أنفسنا مضطرين للنجاة من تلك الحالة، ونحاول التسكين والتنويم وإبطال الشعور وإلغائه.. وإلّا فلا نطيق تجاه استغاثات وصيحات لا تنقطع! |
| Evvelki elîm yolumuz mağdub ve dâllîn yolu, o yol verir vicdana, tâ en derin yerine hem bir hiss-i elîmi hem bir şedit elemi. Şuur onu gösterir. Şuura zıt olmuşuz.
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| | فالهوى يبطل الحس ويخدّر الشعور، والشهوات الساحرة تطلب اللهو، كي تخدع الوجدان وتستغفله وتنوم الروح وتسكّنها لئلا تشعر بالألم. |
| Hem kurtulmak için de muztar ve hem muhtacız; ya o teskin edilsin ya ihsas da olmasın; yoksa dayanamayız, feryad u fîzar dinlenmez.
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| | لأن ذلك الشعور يحرق الوجدان حتى لا يكاد يطاق صراخه من شدة الألم.. ألا إن ألم اليأس لا يطاق حقا! |
| Hüda ise şifadır; heva, iptal-i histir. Bu da teselli ister, bu da tegafül ister, bu da meşgale ister, bu da eğlence ister. Hevesat-ı sihirbaz.
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| | إذ كلما ابتعد الوجدان عن الصراط المستقيم اشتدت عليه تلك الحالة، حتى إن كل لذة تترك أثرا من الألم، |
| Tâ vicdanı aldatsın, ruhu tenvim edilsin, tâ elem hissolmasın. Yoksa o elem-i elîm, vicdanı ihrak eder; fîzara dayanılmaz, elem-i yeis çekilmez.
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| | ولا تجدي بهرجة المدنية الممزوجة بالشهوات والهوى واللهو.. إنها مَرْهَم فاسد وسمّ منوّم للضيق الذي يولده الضلال. |
| Demek, sırat-ı müstakimden ne kadar uzak düşse o derece nisbeten şu halet tesir eder, vicdanı bağırttırır. Her lezzetin içinde elemi var, birer iz.
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| | فيا صديقي العزيز! لقد شعرنا بالراحة من حالتنا في الطريق الثانية المنورة، فتلك هي منبع اللذات وحياة الحياة، بل تنقلب فيها الآلام إلى لذائذ.. |
| Demek heves, heva, eğlence, sefahetten memzuç olan şaşaa-i medeni, bu dalaletten gelen şu müthiş sıkıntıya bir yalancı merhem, uyutucu zehirbaz.
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| | هكذا عرفناها، فهي تبعث الاطمئنان إلى الروح -حسب قوة الإيمان- والجسد متلذذ بلذة الروح، والروح تتنعم بنعم الوجدان. |
| Ey aziz arkadaşım! İkinci yolumuzda, o nurani tarîkte bir haleti hissettik; o haletle oluyor hayat, maden-i lezzet. Âlâm, olur lezaiz.
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| | إنّ في الوجدان سعادة عاجلة مندرجة فيه، إنها فردوس معنوي مندمج في سويداء القلب. والتفكر يقطّرها ويذيقها الإنسان. أما الشعور فهو الذي يُظهرها. |
| Onunla bunu bildik ki mütefavit derecede, kuvvet-i iman nisbetinde ruha bir halet verir. Ceset ruhla mültezdir, ruh vicdanla mütelezziz.
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| | ونعلم الآن: أنه بمقدار تيقظ القلب، وحركة الوجدان، وشعور الروح، تزداد اللذة والمتعة، وتنقلب نار «الحياة» نورا وشتاؤها صيفا. |
| Bir saadet-i âcile, vicdanda mündericdir; bir firdevs-i manevî, kalbinde mündemicdir. Düşünmekse deşmektir, şuur ise şiar-ı râz.
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| | وهكذا تنفتح أبواب الجنان على مصراعيها في الوجدان، وتغدو الدنيا جنة واسعة تجول فيها أرواحنا، بل تعلو علو الصقور، بجناحي الصلاة والدعاء. |
| Şimdi ne kadar kalp ikaz edilirse, vicdan tahrik edilse, ruha ihsas verilse lezzet ziyade olur hem de döner ateşi nur, şitası yaz.
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| | وأستودعكم الله يا صديقي الحميم. ولْندْعُ معا كل لأخيه. نفترق الآن وإلى لقاءٍ. |
| Vicdanda firdevslerin kapıları açılır, dünya olur bir cennet. İçinde ruhlarımız, eder pervaz u perdaz, olur şehbaz u şehnaz, yelpez namaz u niyaz.
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| | اللّهم اهدنا الصراط المستقيم. |
| Ey aziz yoldaşım! Şimdi Allah’a ısmarladık. Gel, beraber bir dua ederiz, sonra da buluşmak üzere ayrılırız…
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| | == جواب موجّه إلى الكنيسة الأنكليكية == |
| اَللّٰهُمَّ اِه۟دِنَا الصِّرَاطَ ال۟مُس۟تَقٖيمَ اٰمٖينَ
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| | سأل ذات يوم قسيس حاقد، ذلك السياسي الماكر، العدوّ الألدّ للإسلام، عن أربعة أمور طالبا الإجابة عنها في ستمائة كلمة. |
| == Anglikan Kilisesine Cevap ==
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| Bir zaman bîaman İslâm’ın düşmanı, siyasî bir dessas, yüksekte kendini göstermek isteyen vesvas bir papaz, desise niyetiyle hem inkâr suretinde
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| | سألها بغية إثارة الشبهات، مستنكرا ومتعاليا، وبشماتة متناهية، وفي وقت عصيب حيث كانت دولته تشد الخناق في مضايقنا. |
| Hem de boğazımızı pençesiyle sıktığı bir zaman-ı elîmde pek şematetkârane bir istifham ile dört şey sordu bizden.
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| | فينبغي الإجابة بـ: «تبا لك!» تجاه شماتته، وبالسكون عليه بسخط تجاه مكره ودسيسته، فضلا عن جواب مسكت ينـزل به كالمطرقة تجاه إنكاره. |
| Altı yüz kelime istedi. Şematetine karşı yüzüne “Tuh!” demek, desisesine karşı küsmekle sükût etmek, inkârına karşı da
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| | فأنا لا أضعه موضع خطابي، بل أجوبتنا لمن يلقي السمع وينشد الحق وهي الآتية: |
| Tokmak gibi bir cevab-ı müskit vermek lâzımdı. Onu muhatap etmem. Bir hakperest adama böyle cevabımız var. O dedi '''birincide:'''
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| | فلقد قال في السؤال الأول: ما دين محمد ﷺ؟. قلت: إنه القرآن الكريم. أساسُ قصده ترسيخ أركان الإيمان الستة وتعميق أركان الإسلام الخمسة. |
| “Muhammed aleyhissalâtü vesselâm dini nedir?” Dedim: “İşte Kur’an’dır. Erkân-ı sitte-i iman, erkân-ı hamse-i İslâm, esas maksad-ı Kur’an.” Der '''ikincisinde:'''
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| | ويقول في الثاني: ماذا قدّم للفكر وللحياة؟ قلت: التوحيد للفكر، والاستقامة للحياة. وشاهدي في هذا قوله تعالى: |
| “Fikir ve hayata ne vermiş?” Dedim: “Fikre tevhid, hayata istikamet. Buna dair şahidim:
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| | ﴿ قُلْ هُوَ اللّٰهُ اَحَدٌ ﴾ (الإخلاص:١)، ﴿ فَاسْتَقِمْ كَمَٓا اُمِرْتَ ﴾ (هود: ١١٢). |
| فَاس۟تَقِم۟ كَمَٓا اُمِر۟تَ قُل۟ هُوَ اللّٰهُ اَحَدٌ
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| | ويقول في الثالث: كيف يعالج الصراعات الحاضرة؟. أقول: بتحريم الربا وفرض الزكـاة. وشاهدي قوله تعالى: |
| Der '''üçüncüsünde:''' “Mezahim-i hazıra nasıl tedavi eder?” Derim: “Hurmet-i riba hem vücub-u zekâtla. Buna dair şahidim:
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| | ﴿ وَاَحَلَّ اللّٰهُ الْبَيْعَ وَحَرَّمَ الرِّبٰوا ﴾ (البقرة:٢٧٥)، ﴿ يَمْحَقُ اللّٰهُ الرِّبٰوا ﴾ (البقرة:٢٧٦)، ﴿ وَاَق۪يمُوا الصَّلٰوةَ وَاٰتُوا الزَّكٰوةَ ﴾ (البقرة:٤٣) |
| يَم۟حَقُ اللّٰهُ الرِّبٰوا da.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | <nowiki></nowiki> |
| وَاَحَلَّ اللّٰهُ ال۟بَي۟عَ وَحَرَّمَ الرِّبٰوا وَاَقٖيمُوا الصَّلٰوةَ وَاٰتُوا الزَّكٰوةَ
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | ويقول في الرابع: |
| Der '''dördüncüsünde:'''
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| | كيف ينظر إلى الاضطرابات البشرية؟ أقول: السعي هو الأساس، وألاّ تتكدس ثروة الإنسان بيد الظالمين، ولا يكنـزوها. |
| “İhtilal-i beşere ne nazarla bakıyor?” Derim: “Sa’y, asıl esastır. Servet-i insaniye, zalimlerde toplanmaz, saklanmaz ellerinde.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | وشاهدي قوله تعالى: |
| Buna dair şahidim:
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| | ﴿ وَاَنْ لَيْسَ لِلْاِنْسَانِ اِلَّا مَا سَعٰى ﴾ (النجم:٣٩)، |
| لَي۟سَ لِل۟اِن۟سَانِ اِلَّا مَا سَعٰى وَالَّذٖينَ يَك۟نِزُونَ الذَّهَبَ وَال۟فِضَّةَ
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| | ﴿ وَالَّذ۪ينَ يَكْنِزُونَ الذَّهَبَ وَالْفِضَّةَ وَلَا يُنْفِقُونَهَا ف۪ي سَب۪يلِ اللّٰهِۙ فَبَشِّرْهُمْ بِعَذَابٍ اَل۪يمٍ ﴾ (التوبة:٣٤). |
| وَلَا يُن۟فِقُونَهَا فٖى سَبٖيلِ اللّٰهِ فَبَشِّر۟هُم۟ بِعَذَابٍ اَلٖيمٍ | |
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| | ما شاء الله على هذا الجواب بمائة مرة. (المؤلف). |
| (Yüz mâşâallah bu cevaba.) | |
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