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248. satır: |
248. satır: |
| ومن هنا فالنصرانية ربما تتمزق بهجوم العوام المظلومين على الظالمين الذين يَعُدّون أنفسهم خواص النصارى، حيث النصرانية تُعِين تحكّمهم. بينما الإسلام لا ينبغي أن يتزعزع لأنه ملك العوام أكثرَ من الخواص الدنيويين. | | ومن هنا فالنصرانية ربما تتمزق بهجوم العوام المظلومين على الظالمين الذين يَعُدّون أنفسهم خواص النصارى، حيث النصرانية تُعِين تحكّمهم. بينما الإسلام لا ينبغي أن يتزعزع لأنه ملك العوام أكثرَ من الخواص الدنيويين. |
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| <span id="يُخ۟رِجُ_ال۟حَىَّ_مِنَ_ال۟مَيِّتِ_وَ_يُخ۟رِجُ_ال۟مَيِّتَ_مِنَ_ال۟حَىِّ"></span>
| | == يُخ۟رِجُ ال۟حَىَّ مِنَ ال۟مَيِّتِ وَ يُخ۟رِجُ ال۟مَيِّتَ مِنَ ال۟حَىِّ == |
| == يُخ۟رِجُ ال۟حَىَّ مِنَ ال۟مَيِّتِ وَ يُخ۟رِجُ ال۟مَيِّتَ مِنَ ال۟حَىِّ ==
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421. satır: |
420. satır: |
| == حوار في رؤيا == | | == حوار في رؤيا == |
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| | «المعنى وكذا الألفاظ التي ظلت في الخاطر هي نفسها كما جاءت في الرؤيا» |
| Meali ve hatırda kalan elfazı aynendir.
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| كنت في أيلولِ سنة ١٩١٩ أتقلب في اضطراب شديد، من جراء اليأس البالغ الذي ولّدته حوادث الدهر؛ كنت أبحث عن نور بين هذه الظلمات المتكاثفة القاتمة.. لم أستطع أن أجده في يقظة هي رؤيا في منام. بل وجدته في رؤيَا صادقةٍ هي يقظةٌ في الحقيقة. | | كنت في أيلولِ سنة ١٩١٩ أتقلب في اضطراب شديد، من جراء اليأس البالغ الذي ولّدته حوادث الدهر؛ كنت أبحث عن نور بين هذه الظلمات المتكاثفة القاتمة.. لم أستطع أن أجده في يقظة هي رؤيا في منام. بل وجدته في رؤيَا صادقةٍ هي يقظةٌ في الحقيقة. |
668. satır: |
665. satır: |
| وها هو العالم الإسلامي ساعد على قتل ولده المقدام غافلاً دون علم به، فهو يلطم وينفّش شعره كالوالدة الحنون. | | وها هو العالم الإسلامي ساعد على قتل ولده المقدام غافلاً دون علم به، فهو يلطم وينفّش شعره كالوالدة الحنون. |
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| | فالملايين من المسلمين دُفعوا إلى سياحات طويلة في العالم، تحت لواء العدو الذي هو الشر المحض، بدلاً من شدّ الرحال إلى الحج وهو الخير المحض. |
| Milyonlarla ehl-i İslâm, hayr-ı mahz olan sefer-i hacca şedd-i rahl etmek yerine, şerr-i mahz olan düşman bayrağı altında dünyada uzun seyahatler ettirildi.
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| | فاعتبروا! |
| فَاع۟تَبِرُوا
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| | <nowiki>*</nowiki> * * |
| <nowiki>*</nowiki> * * | |
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| | (كما أن الضرورات تبيح المحظورات، كذلك تسهّل المشكلات). |
| كَمَا اَنَّ الضَّرُورَاتِ تُبٖيحُ ال۟مَح۟ظُورَاتِ كَذٰلِكَ تُسَهِّلُ ال۟مُش۟كِلَاتِ
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| | إن الدجاجة التي يضرب بها المثل في الخوف والجبن تهاجم الجاموس الضخم حفاظاً على فراخها.. فها هي الجسارة الفائقة. |
| Korkaklıkta darb-ı mesel hükmünde olan tavuk, çocukları yanında iken şefkat-i cinsiyesiyle camuşa saldırır. İşte dehşetli bir cesaret.
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| | وخوف العنز من الذئب يضرب به المثل، إلّا أن خوفه ينقلب إلى دفاع ومقاومة في حالة الاضطرار حتى يقارع الذئب.. فها هي الشجاعة الخارقة. |
| Hem darb-ı mesel olmuş; keçi, kurttan havfı, ıztırar vaktinde mukavemete inkılab eder, boynuzuyla kurdun karnını deldiği vakidir. İşte hârika bir şecaat.
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| | نعم، إن الميل الفطري لا يُقاوَم، فغرفة من ماء إذا وضعت في كرة من حديد، فتّت الماءُ الحديدَ كلما تعرض للبرودة في الشتاء، وذلك لميله إلى الانبساط والتمدد. |
| Fıtrî meyelan, mukavemetsûzdur. Bir avuç su, kalın bir demir gülle içinde atılsa, kışta soğuğa maruz bırakılsa meyl-i inbisat demiri parçalar.
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| | فجسارة الدجاجة الرؤوم على فراخها.. وشجاعة الاضطرار لدى العنز العزيز النفس يمثلان هيجاناً فطرياً.. فمثل هذا الهيجان الفطري إذا تعرض له ظلم الكافر البارد، فتّت كل شيء أمامه كالماء في كرة الحديد. (والقرويون الروس أمثلة شهود على هذا). |
| Evet şefkatli tavuk cesareti, hamiyetli keçi ıztırarî şecaati gibi fıtrî bir heyecan, demir güllede su gibi, zulmün bürudetli husumet-i kâfiranesine maruz kaldıkça her şeyi parçalar. Rus mujikleri buna şahittir.
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| | ومع هذا فإن الشهامة الخارقة التي تنطوي عليها ماهية الإيمان، والشجاعة التي تتحدى العالم الكامنة في طبيعة العزة الإسلامية يمكن أن تُظهر المعجزات في كل وقت وآن بانبساط الأخوة الإسلامية وتَوَسُّعِها. |
| Bununla beraber imanın mahiyetindeki hârikulâde şehamet, izzet-i İslâmiyenin tabiatındaki âlem-pesend şecaat, uhuvvet-i İslâmiyenin intibahıyla her vakit mu’cizeleri gösterebilir.
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| | ستشرق شمس الحقيقة يوماً |
| Bir gün olur elbette doğar şems-i hakikat
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| | أفيظل العالم في ظلام إلى الأبد؟ |
| Hiç böyle müebbed mi kalır zulmet-i âlem
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760. satır: |
735. satır: |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | <span id="Bundan_yedi_sene_evvel_bir_risaleme_yazdığım_bir_zeyldir"></span> |
| == Bundan yedi sene evvel bir risaleme yazdığım bir zeyldir == | | == ذيل الذيل == |
| </div> | | |
| | '''لدواء اليأس (<ref>رسالة «دواء اليأس» هي «الخطبة الشامية» وذيلها «تشخيص العلة» وهذا البحث ذيل لذيلها. إلّا أنه نشر مع هذه الرسالة فأبقيناه في موضعه. (المترجم).</ref>)''' |
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
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| بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّح۪يمِ | | بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّح۪يمِ |
| </div>
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | الحمد لله الذي قال: ﴿ وَلَا يَغْتَبْ بَعْضُكُمْ بَعْضًا ﴾ (الحجرات:١٢). |
| اَل۟حَم۟دُ لِلّٰهِ الَّذٖى قَالَ : وَ لَا يَغ۟تَب۟ بَع۟ضُكُم۟ بَع۟ضًا وَ الصَّلَاةُ عَلٰى مُحَمَّدٍ
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| </div> | | والصلاة على محمد الذي قال: «من قال: هلك الناس هلك الناس فهو أهلكهم». (<ref>مسلم (٢٠٢٤/٤، رقم ٢٦٢٣)؛ أبو داود (٢٩٦/٤، رقم ٤٩٨٣)؛ أحمد (٣٤٢/٢، رقم ٨٤٩٥) عن أبي هريرة أن رسول الله ﷺ قال: «إذا قال الرجل هلك الناس فهو أهلكهم».</ref>) |
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| | <nowiki></nowiki> |
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| | فإن محاكم التفتيش المدنية لهذا العصر، أنجبت لقطاءها -غير الشرعيين- باستعمالها وسائل رهيبة في تلقيح بعض الأذهان، وتجري بهم حقدها الدفين على الإسلام للثأر منه، محاوِلةً فتح الباب أمام ما يصرف المسلمين عن الدين، أو جَعْلهم في الأقل مهملين له، أو بإمالتهم نحو النصرانية، أو التخلي عن الإسلام بإلقاء الشبهات والشكوك في العقول، |
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| | وتشيع بهذا مكراً سيئاً هو الآتي: |
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| | «أيها المسلم! تأمل، أينما وجد مسلم فهو فقير، غافل، جاهل إلى حدٍ ما، بينما النصراني أينما حلّ فهو متحضر، يقظ، صاحب ثروة... وهذا يعني.. الخ..» |
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| | وأنا أقول: |
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| | أيها المسلم لا ترخِ يدك عن الإسلام الذي هو حامي وجودنا وكياننا تجاه الدمار الذي تولّده هذه النتيجة المُخيفة لتقدم أوروبا، بل عض عليه بالنواجذ واستعصم به بقوة، وإلّا فمصيرك الهلاك. |
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| | نعم، نحن نتدنى إلى أسفل وهم يرقون إلى أعلى، ولهذا سببان اثنان: أحدهما مادي، والآخر معنوي. |
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| | السبب الأول: |
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| | الوضع الفطري لأوروبا التي هي كنيسة النصرانية عامة، ومنبع حياتها، فهي ضيقة، جميلة، تملك الحديد، متعرجة السواحل، تلتف فيها الأنهار والبحار التفاف الأمعاء في الجسد، مناخها بارد. |
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| | نعم، إن أوروبا على الرغم من كونها عُشر الخمس للكرة الأرضية، فإنها جذبت ربع البشرية نحوها بلطافة مناخها الفطري. |
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| | وإنه ثابت حكمةً: أن اجتماع الأفراد الكثيرين يولّد الحاجات، فلا يستوعب إنتاجُ الأرض تلك الحاجاتِ التي تتزايد بأسباب كثيرة -كالتقليد وغيره- ومن هنا تصبح الحاجةُ أمَّ الاختراع والصناعة، |
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| | وحبُّ الاستطلاع معلّمَ العلم، والضيقُ الروحي مولدَ السفاهة. |
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| | نعم، إن التوجه نحو الصناعة والميل إلى المعرفة ينشـأ من الكثرة؛ فبسبب ضيق المكان في أوروبا، وكثرة بحارها وأنهارها التي هي وسائط نقل طبيعية فيها، فإن التعارف ينتج التجارة، والتعاونَ الاشتراك في الأعمال، مثلما يولد التّماس تَلَاحُقَ الأفكار والمنافسةَ والتسابق. |
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| | ولكثرة ما فيها من الحديد -الذي هو منبع جميع صناعات أوروبا- أعطى لمدنيتهم السلاحَ القوي حتى غصبت أنقاضَ مدنيات الدنيا كلها وأغارت عليها، إلى حد أثقلت كفتها وأخلّت بميزان الكرة الأرضية. |
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| | ثم إن البرودة المعتدلة التي من شأنها أن تأخذ كل شيء ببطء وتتركه ببطء، قد أعطت لسعيهم الثبات والمتانة، فأدامت مدنيتهم. |
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| | ثم إن تَشكُّل دولهم المستندة إلى العلم، وتصادُم قواهم المتكافئة، وإزعاجاتِ استبداداتهم الغدارة، ومضايقاتِ تعصبهم المقيت الظالم -كتعصب محاكم التفتيش- والذي آل إلى خلاف المقصود، والتسابقَ الجاري بين عناصرها المتوازنة.. كل ذلك نمّى استعداداتِ الأوروبيين، وفجّر قابلياتِهم، فظهرت لديهم المزايا، والفكر القومي. |
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| | السبب الثاني: |
| اِ لَّذٖى قَالَ : مَن۟ قَالَ هَلَكَ النَّاسُ هَلَكَ النَّاسُ فَهُوَ اَه۟لَكَهُم۟
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| | هو نقطة الاستناد. نعم، إن أيّ نصراني كان إذا ما رفع رأسه ومدّ يده إلى أي مقصد من المقاصد المتسلسلة المتداخلة، إذا به يجد وراءه نقطة استناد قوية تعزز قوته المعنوية وتبعث فيها الحياة، حتى يجد في نفسه من القوة ما يمكّنه أن يقتحم كل صعب وعظيم من الأعمال. |
| اَمَّا بَع۟د :
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| | فتلك النقطة، نقطة الاستناد، هي مدنيةُ أوروبا التي هي معسكر (كتلة مسلحة) وكنيستُها العظيمة، وهي مستعدة في كل آن أن تنفخ الحياة في عروق رفقاء دينها الذين يمدون إليها أيديهم من كل صوب، ومتهيأة أيضاً لقطع الشريان النابض للمسلمين، فلقد عجنت بتعصب محاكم التفتيش المدنية الماكرة، والإلحاد النابع من الفكر المادي. فأوروبا تختال غروراً بانتصار مدنيتها على الآخرين. |
| Şu zamanın medeni engizisyonu müthiş bir vesile ile bazı ezhanı telkîh ile bir kısım nâmeşru evladını vücuda getirip İslâmiyet’e karşı kinini ve hiss-i intikamını icra eder. Diyanetsizliğe veya lâübaliliğe veya Hristiyanlığa temayüle veya İslâmiyet’ten şüphe ile soğutmaya bir kapı açmak ister.
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| | ألا يُشاهد الإنكليز الذين تقنّعوا بقناع الحرية، يَمدّون أيدهم إلى كل جهة ويتحرون عن نصراني، فأينما وجدوه بعثوا فيه الحياة.. فها هي الحبشة والسودان... وها هي الطيار والأرتوش وها هي لبنان وحوران.. وها هي ماسور وألبانيا.. وها هم الكرد والأرمن.. والترك والروم.. الخ. |
| İşte o desise şudur: “Ey Müslüman bak, nerede bir Müslim varsa bi’n-nisbe fakir, gafil, bedevîdir. Nerede Hristiyan varsa bir derece medeni, mütenebbih, ehl-i servettir. Demek… ilâ âhir.”
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| | حاصل الكلام: إن الذي ينفث فيهم الحياة هو الأمل.. والذي يقتلنا هو اليأس. وقد اشتهر أحدهم بقوله: «أستطيع أن أحرّك الكرة الأرضية من مكانها إذا وجدتُ نقطة استناد»، ففي هذا القول المفترض نقطة عجيبة، هي: أن هذا الإنسان الصغير جداً إذا ما وَجد نقطة استناد يستطيع أن يدير أعظم الأشياء كالكرة الأرضية. |
| Ben de derim ki:
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| | فيا أهل الإسلام! |
| — Ey Müslüman! Biri maddî, biri manevî Avrupa rüçhanının iki sebebinin şu netice-i müthişiyle o neticenin tesir-i muharribanesine karşı, mevcudiyetimizin hâmisi olan İslâmiyet’ten elini gevşetme. Dört el ile sarıl, yoksa mahvolursun.
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| | إن نقطة استنادنا تجاه المصائب والدواهي، التي ألقت بثقلها العظيم، عِظم الأرض، على العالم الإسلامي، هي الإسلام الذي يأمر بالاتحاد النابع من المحبة، وبامتزاج الأفكار الناشئ من المعرفة، وبالتعاون الذي تولده الأخوّة. |
| Evet, biz aşağıya iniyoruz, onlar yukarıya çıkıyor. Bunun iki sebebi vardır. Biri maddî, biri manevîdir.
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| | فانظر بدءاً من العالم الإسلامي، تلك الدائرة الواسعة، وانتهاء إلى طالب علم في المدرسة الشرعية كأصغر دائرة... تجد أن لكل منها عُقداً حياتية، وتلك العقد مرتبطة ببعضها متسلسلة ومستندة إلى تلك النقطة العظمى، كأفراد المجتمع وروابطه.. بمعنى أنه يمكن أن يصحو المسلمون ويبدأوا بالرقي متى ما نُبِّهوا وبُث فيهم روحُ النماء، فلا صحوة بخنق تلك العقد الحياتية. |
| '''Birinci Sebep:''' Umum Hristiyan’ın kilisesi ve maden-i hayatı olan Avrupa’nın vaziyet-i fıtriyesidir. Zira dardır, güzeldir, demir madenidir, girintili çıkıntılıdır. Deniz ve enharı bağırsaklarıdır, bâriddir.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | وإلّا فإن قيام أحد بالموازنة والمقارنة بين محاسن أوروبا ومساوئنا، وثمرةِ تلاحق الأفكار لديهم مع ثمرة سعي شخص واحد عندنا... (<ref>إن إسناد محاسن المدنية إلى النصرانية التي لا فضل لها فيها، وإلصاق التدني والتقهقر بالإسلام الذي هو عدوّ له، دليل على دوران المقدرات بخلاف دورتها، وعلى قلب الأوضاع.(المؤلف).</ref>) فكما أنه يبين بهذه المقارنة الظالمة المجحفة الخادعة أنه لقيط أوروبا لإظهار افتتانه بها ونفوره من أمته، فإنه أيضاً بالهجاء النابع من الخِداع والفكر الثوري والميل إلى التخريب، والمشحون بالعصيان والافتراء والتعرض للشرف، يُظهر فرعونيتَه والثناءَ على نفسه والتربيت على غروره ضمناً، مبدياً دون علم منه عداءه للإسلام. علماً أنه المكلف بالشعور بالشفقة على أمته شرعاً وعقلاً وحكمة، إلّا أنه بحكم الفرعونية والأنانية والغرور يضع الشعور بالتحقير بدلاً من الشعور بالشفقة، والميلَ إلى النفور من الأمة بدلاً من ميل الانجذاب إليها، وإرادةَ الاستخفاف بها بدلاً من محبتها، ويَصِمُها بالجهل بدلاً من احترامها، ويرغب في التكبر عليها بدلاً من الرحمة بها، ويقيم روح الانفرادية بدلاً من روح التضحية والفداء لها... فيثبت بهذا كله أنه لا يملك حَمِيَّة للأمة وأنه مبتوت الأصالة، فيكون جانياً منفوراً منه في نظر الحقيقة بحيث يتصرف تصرف الأحمق الأبله، كمن يحاول إلباس عالم فاضل في المسجد ملابسَ أعجبته لراقصة ساقطة في باريس. |
| Evet Avrupa, küre-i zeminin hamse aşeri iken nev-i beşerin bir rub’unu letafet-i fıtriyesi ile kendine çekmiş. Hikmeten sabittir ki efrad-ı kesîrenin içtimaı, ihtiyacatı intac eder. Görenek gibi çok esbab ile tekessür eden hâcat, zeminin kuvve-i nâbitesine sıkışmaz.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | ذلك لأن الحمية هي نتيجة ضرورية للمحبة والاحترام والرحمة، فلا حمية بدون هذه الأمور، وإلّا فهي حمية كاذبة وخادعة. والنفورُ من الأمة خلافُ الحمية أيضاً، |
| İşte şu noktadan ihtiyaç sanata ve merak ilme ve sıkıntı vesait-i sefahete hocalık edip talime başlarlar.
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| | فقساوسة أوربا الذين يشنون هجومهم على المتعصبين عندنا، كل منهم أكثر تعصباً وتزمتاً في مسلكهم السقيم؛ فلو مَدَح عالمٌ دينيٌ الشيخَ الكيلاني بإفراطٍ كمدحِ أولئك لشكسبير لكُفِّرَ. |
| Evet fikr-i sanat, meyl-i marifet, kesretten çıkar. Avrupa’nın darlığı ve deniz ve enharı olan vesait-i tabiiye-i münakale içinde dolaşması sebebiyle; tearüf ticareti, teavün iştirak-i mesaiyi intac ettikleri gibi temas dahi telahuk-u efkârı, rekabet de müsabakatı tevlid ederler. Ve bütün sanayiin maderi olan demir madeni kesretle içinde bulunduğundan o demir, medeniyetlerine öyle bir silah-ı kuvvet vermiştir ki dünyanın bütün enkaz-ı medeniyetlerini gasb ve garet edip gayet ağır bastı, mizan-ı zeminin muvazenetini bozdu.
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| | هيهات، أين المحبة من هؤلاء؟ |
| Hem de her şeyi geç almak, geç bırakmak şanından olan bürudet-i mutedilane, sa’ylerine sebat ve metanet verip medeniyetlerini idame etmiştir. Hem de ilme istinad ile devletlerinin teşekkülü, mütekabil kuvvetlerinin tesadümü, gaddarane istibdatlarının iz’acatı, engizisyonane taassuplarının aksü’l-amel yapan tazyikatı, mütevazî unsurlarının rekabetle müsabakatı, Avrupalıların istidatlarını inkişaf ettirip mezaya ve fikr-i milliyeti uyandırdı.
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| | إن إحدى العقد الحياتية المحرِّكة للمجتمع والدافعةِ إلى الفعالية، هو الفكر الأدبي. الذي بدأ فينا وحده بالنمو -مع الأسف- ولا سيما أدب الهجاء ورغبة تحقير الآخرين. والذي ينطوي على الإعجاب بالنفس والغلو في الوصف في أسلوب شعري وبما لا يليق بالأدب. |
| '''İkinci Sebep:''' Nokta-i istinaddır. Evet, her bir Hristiyan başını kaldırıp müteselsil ve mütedâhil maksatların birine el atsa arkasına bakar ki istinad edecek, kuvve-i maneviyesine daima imdat edip hayat verecek gayet kavî bir nokta-i istinad görür. Hattâ en ağır ve büyük işlere karşı mübarezeye kendinde kuvvet bulur.
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| | فهو أدب خارج عن الأدب الحقيقي الذي تُؤَدِّبنا به الآيةُ الكريمة ﴿ وَلَا يَغْتَبْ بَعْضُكُمْ بَعْضًا ﴾ (الحجرات:١٢) بحيث يهاجم كلٌّ الآخرَ. |
| İşte o nokta-i istinad, her taraftan ellerini uzatan dindaşlarının urûk-u hayatına kuvvet vermeye ve İslâmların en can alacak damarlarını kesmeye her vakit âmâde ve dessas, medeni engizisyon taassubu ile maddiyyunun dinsizliği ile yoğrulmuş ve medeniyetlerinin galebesi ile mest-i gurur olmuş bir müsellah kitlenin kışlası veya büyük kilisesi olan Avrupa’nın medeniyetidir.
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| | ومع ردّ تعرضات ضمنية للأمة وللإسلام بوجه أولئك القسس، نمر مرّ الكرام على هجائهم اللاديني وإهانة الآخرين، فنمضي قائلين: ربما يستحقون ذلك. |
| Görülmüyor mu ki en hürriyetperver maskesini takan (İ G) elini uzatıp arıyor. Nerede Hristiyan bulsa hayat veriyor. İşte Habeş, Sudan. İşte Tayyar, Artuşi. İşte Lübnan, Huran. İşte Mal Sur ve Arnavut. İşte Kürt ve Ermeni, Türk ve Rum ilâ âhir.
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| | إنني أظن أن الباعث على ذل هذه الأمة أكثرَ من الجهل هو الذكاء الأبتر العقيم غيرُ المرافق لنور القلب. وفي نظري أن أخطر مرض هو الانحياز المتطرف، لأنه يدفع إلى خلاف المقصود، بإخراج كل شيء عن طوره. |
| '''Elhasıl:''' Onları canlandıran emeldir ve bizi öldüren yeistir. Meşhurdur ki biri demiş: “Eğer bir nokta-i istinad bulsam, küre-i zemini yerinden oynatırım.” Bu faraziyede acib bir nokta vardır. Demek bu küçücük insan, nokta-i istinad bulsa küre gibi büyük işleri çevirebilir.
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| | أيها الأخ! |
| Ey ehl-i İslâm! İşte küre-i zemin gibi ağır ve âlem-i İslâmiyet’e çökmüş olan mesaib ve devahîye karşı nokta-i istinadımız: Muhabbet ile ittihadı, marifet ile imtizac-ı efkârı, uhuvvet ile teavünü emreden nokta-i İslâmiyet’tir.
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| | لقد بدأتْ عندنا تباشيرُ أسبابِ فتية، قوية، بدلاً من تلك الأسباب الهرمة التي ولّدت تقدم النصرانية. |
| Bak, âlem-i İslâm’ın şu büyük dairenin nokta-i uzmasından tut tâ en küçük dairenin –mesela medrese talebelerinin– bir ukde-i hayatiyesi vardır. Heyet-i içtimaiyenin efrad ve revabıtı birbirine istinadı gibi o ukdeler dahi birbirine merbut, müteselsilen o nokta-i uzmaya müsteniddir. Demek bütün o ukde-i hayatiyelerini –boğmak değil– belki tenebbüh ve neşv ü nema vermekle İslâm tenebbüh edip terakkiye başlayabilir.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | وقد فصّلت ذلك في كتاب آخر. (<ref>المقصود الخطبة الشامية.</ref>) |
| Yoksa biri Avrupa’nın mehasinini mesavîmizle ve telahuk-u efkârının semeratı, bizim bir şahsın semere-i sa’yi ile insafsızca, aldatıcı cerbeze ile muvazene etmekle (<ref>Hristiyanlığın malı olmayan medeniyeti ona mal etmek, İslâmiyet’in düşmanı olan tedenniyi ona dost göstermek, feleğin ters dönmesine delildir.</ref>) Avrupa’ya şedit bir meftuniyet ve milletine karşı amîk bir nefret hissiyle, kendini Avrupa’nın veled-i nâmeşruu gösterdiği gibi fikr-i ihtilal ve meyl-i tahrip ve aldatıcı cerbezenin neticesi olan hicv-i âsiyane, müfteriyane, namus-şikenane ile kendi firavuniyetini ve zımnen medih ve gururiyetini ve bilmediği halde İslâm’a düşmanlığını göstermekle beraber firavuniyet, enaniyet, gurur hükmü ile milletine karşı şer’an, aklen, hikmeten mükellef olduğu hiss-i şefkat yerine hiss-i tahkir, meyl-i incizab yerine meyl-i nefret, meyelan-ı muhabbet yerine irade-i istihfaf, temayül-ü ihtiram yerine meyelan-ı techil, arzu-yu merhamet yerine arzu-yu taazzum, seciye-i fedakârî yerine temayül-ü infiradî ikame edip hamiyetsizliğini, asılsızlığını gösterdiğinden nazar-ı hakikatte öyle bir cani ve menfur olur ki mesela, birisi Paris’te sefahet âleminde bir âlüfte madamın kametinde istihsan ettiği bir libası, camide muhterem bir hocaya giydirmeye çalışmak gibi bir hareket-i ahmakane ve caniyanede bulunur. Zira hamiyet ise muhabbet, hürmet, merhametin netice-i zaruriyesidir. Onsuz olmaz ve illâ yalandır, sahtekârlıktır. Nefret, hamiyetin zıddıdır.
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| | '''حكاية:''' |
| Mutaassıplara hücum eden Avrupa’nın kâselisleri her biri yüz mutaassıp kadar meslek-i sakîminde mutaassıptır. Bunlardan birisi Şekspir medhinde ettiği ifratı, şayet bir hoca o ifratı Şeyh-i Geylanî medhinde etse idi tekfir olunacaktı.
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| | قبل عشر سنوات (المقصود سنة ١٩١٠م) ذهبتُ إلى «تفليس» وصعدتُ تل الشيخ صنعان، كنت أتأمل تلك الأرجاء وأراقبها. فاقترب مني أحد رجال البوليس فقال: |
| Heyhat! Bunların neresinde millete muhabbet ve millet için hamiyet!
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| | بم تنعم النظر؟ |
| Esefâ! Heyet-i içtimaiyeyi faaliyet ve harekete götüren çok ukde-i hayatiyelerden, bizde inkişafa başlayan yalnız fikr-i edebiyat bâhusus şairane, müfritane, edebşikenane, hodpesendane olan fikr-i hiciv ve arzu-yu tahkirdir.
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| | قلت: |
| وَ لَا يَغ۟تَب۟ بَع۟ضُكُم۟ بَع۟ضًا
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| | أخطّط لمدرستي! |
| Te’dib-i hakikiye karşı edepsizliktir ki birbirine saldırıyor. Fakat millete ve İslâmiyet’e karşı olan ta’rizat-ı zımniyelerini o kâselislerin yüzlerine çarpmakla beraber, onlar birbirine karşı dinsizcesine hiciv ve terzilleri ise kim bilir belki müstahaktırlar düşünüp deyip geçmek ile iktifa ederiz.
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| | قال: |
| Ben zannederim ki bu milletin perişaniyetine; fazla cehaletten ziyade, nur-u kalp ile müterafık olmayan fazla zekâvet-i betra tesir etmiştir. Bence en müthiş maraz asabîliktir. Zira her şeyi haddinden geçirmekle, aksü’l-amel yaptırır.
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| | من أين أنت؟ |
| Ey birader, âlem-i Hristiyan’ın rüçhanına sebebiyet veren ihtiyarlaşmış olan esbaba tekabül edecek genç, dinç esbab bizde inkişafa başlamıştır. Başka kitapta tafsil etmişim. Bir hikâye:
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| | قلت: من بتليس |
| (<ref>Bu kitabın birinci tabından yedi sene geçmiştir. Demek on sene evvel, yani Rumî 1326 senesinde.</ref>) Bundan on sene evvel Tiflis’e gittim. Şeyh San’an Tepesi’ne çıktım, dikkatle temaşa ediyordum. Bir Rus yanıma geldi. Dedi:
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| | قال: |
| — Niye böyle dikkat ediyorsun?
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | وهنا تفليس! |
| Dedim:
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| | قلت: |
| — Medresemin planını yapıyorum.
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| | بتليس وتفليس شقيقتان |
| Dedi:
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| | قال: |
| — Nerelisin?
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| | ماذا تعني؟ |
| — Bitlisliyim dedim.
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| | قلت: |
| Dedi:
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| | لقد بدأ ظهور ثلاثة أنوار متتابعة في آسيا، في العالم الإسلامي، وستنقشع عندكم ثلاث ظلمات بعضها فوق بعض، سيُمزَّق هذا الستار المستبد ويتقلص، وعندها آتي إلى هنا وأُنشئ مدرستي. |
| — Bu Tiflis’tir.
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| | قال: |
| Dedim:
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| | هيهات! إنني أحار من فرطِ أَمَلِكَ؟ |
| — Bitlis, Tiflis birbirinin kardeşidir.
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| | قلت: |
| Dedi:
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| | وأنا أحار من عقلك! أيمكن أن تتوقع دوام هذا الشتاء؟ إن لكل شتاء ربيعاً ولكل ليل نهاراً. |
| — Ne demek?
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| | قال: |
| Dedim:
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | لقد تفرق المسلمون شذر مذر. |
| — Asya’da, âlem-i İslâm’da üç nur, birbiri arka sıra inkişafa başlıyor, sizde birbiri üstünde üç zulmet inkışaa başlayacaktır. Şu perde-i müstebidane yırtılacak, takallüs edecek, ben de gelip burada medresemi yapacağım.
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| </div>
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| | قلت: |
| Dedi:
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| </div>
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| | ذهبوا لكسب العلم، فها هو الهندي الذي هو ابن الإسلام الكفء يَدرس في إعدادية الإنكليز. |
| — Heyhat! Şaşarım senin ümidine.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | وها هو المصري الذي هو ابن الإسلام الذكي يتلقى الدرس في المدرسة الإدارية السياسية للإنكليز.. |
| Dedim:
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| | وها هو القفقاس والتركستاني اللذان هما ابنا الإسلام الشجاعان يتدربان في المدرسة الحربية للروس.. الخ. |
| — Ben de şaşarım senin aklına. Bu kışın devamına ihtimal verebilir misin? Her kışın bir baharı, her gecenin bir neharı vardır.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | فيا هذا! إن هؤلاء الأبناء البررة النبلاء، بعد ما ينالون شهاداتهم، سيتولى كل منهم قارة من القارات، ويرفعون لواء أبيهم العادل، الإسلام العظيم، خفاقاً ليرفرف في آفاق الكمالات، معلنين سر الحكمة الأزلية المقدرة في بني البشر رغم كل شيء. |
| Dedi:
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| | وهذا هو نصف حكايتي. |
| — İslâm parça parça olmuş.
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| | مثال: |
| Dedim:
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| | والآن سأمثل للحالة الروحية التي تدفع إلى القول: «نفسي نفسي.. ماذا عليّ». بالآتي: |
| — Tahsile gitmişler. İşte Hindistan, İslâm’ın müstaid bir veledidir, İngiliz mekteb-i idadisinde çalışıyor. Mısır, İslâm’ın zeki bir mahdumudur, İngiliz mekteb-i mülkiyesinden ders alıyor. Kafkas ve Türkistan, İslâm’ın iki bahadır oğullarıdır, Rus mekteb-i harbiyesinde talim alıyor, ilâ âhir.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr"> | | يتقابل شخصان وتبدأ المناظرةُ والمفاخرة بينهما، أحدهما جسور ولكن عضت النوائبُ (<ref>بمعنى أن «الدنيا سجن المؤمن وجنة الكافر» ليس مجازاً. (المؤلف).</ref>) عشيرتَه الأصيلة. والآخر جبان، لكنه ينتمي إلى عشيرة أخرى تبسمت لها الأقدار. |
| Yahu şu asilzade evlat, şehadetnamelerini aldıktan sonra her biri bir kıta başına geçecek, muhteşem âdil pederleri olan İslâmiyet’in bayrağını, âfak-ı kemalâtta temevvüc ettirmekle, kader-i ezelînin nazarında feleğin inadına, nev-i beşerdeki hikmet-i ezeliyenin sırrını ilan edecektir.
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| | فالأول يرفع رأسه ويرى ذلّ عشيرته لا تستطيع عزة نفسه تحمّل الذل، فيخفض رأسه وينظر إلى نفسه، فيراها محملة إلى حدٍّ ما بالعزة. وعندها يبدأ غروره المجروح بالأنانية بالصراخ قائلاً: وماذا عليّ.. ها أنذا! وهاهي أفعالي أنا.. فينسحب من تلك العشيرة أو ينتسب إلى أخرى مُظهِراً عدم أصالته. |
| İşte hikâyemin yarısı bu kadar.
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| | أما الثاني فكلما رفع رأسه سطعت أمام ناظرَيْه مفاخرُ عشيرته فينتفخ غروره. ولكن ما إن ينظر إلى نفسه يراها واهية، وعندها يتيقظ روح التضحية والفداء في الشعور القومي، فيقول: فداكِ نفسي يا عشيرتي!. |
| Neme lâzım ve nefsî nefsî dediren halet-i ruhiyeyi, bir temsil ile beyan edeceğim:
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| | فإذا فهمتَ الرمز الكامن في هذا المثال، فإن في ميدان العالم هذا، ميدانُ الامتحان والمجاهدة والسباق، إذا تظاهرت مشاعر كل مسلم ونصراني، وكردي ورومي، في أثناء المبارزة في الحَمِيَّة، تجد سر المثال. ولكن هذا التفاوت ليس كما يظنه الناس وربما هو ناتج من النظر الظاهري والسطحي وغلط الحس. |
| Felekzede, perişan (<ref>Demek اَلدُّن۟يَا سِج۟نُ ال۟مُؤ۟مِنِ وَ جَنَّةُ ال۟كَافِر mecaz değilmiş.</ref>) fakat asil bir aşiretten bir cesur adam ile tâli’i yaver, feleği müsait, diğer bir aşiretten bir korkak ile bir yerde rast gelirler. Müfahere, münazara başlar.
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| | '''أيها المسلم!''' |
| Evvelki adam başını kaldırır, aşiretinin zelil olduğunu görür, izzet-i nefsine yediremez. Başını indirir, nefsine bakar, bir derece ağır görür. Eyvah! O vakit “Neme lâzım, işte ben, işte ef’alim!” gibi şahsiyatla yaralanmış gururu feryada başlar. Veyahut o aşiretten çekilip veya asılsızlık gösterip başka aşirete intisap eder.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | إياك أن تنخدع. فلا تخفضْ رأسك! فإن قطعةَ ألماسٍ نادرة مهما كانت صَدِئَةً أفضلُ من قطعة زجاج لامعة دوماً. فضعفُ الإسلام الظاهري ناشئ من خدمة هذه المدنية الحاضرة في سبيل دين آخر. |
| İkinci adam başını kaldırdıkça aşiretinin mefahiri gözünü kamaştırır, hiss-i gururunu kabartır, nefsine bakar gevşek görür. İşte o vakit, hiss-i fedakârî fikr-i milliyet uyanır “Aşiretime kurban olayım.” der.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | آن الأوان إذن أن تبدل هذه المدنيةُ صورتَها، فإذا ما بَدَّلَتْها فالقضية تنعكس. |
| Eğer bu temsilin remzini anladınsa şu müsabaka ve mücadele meydanı olan bu cihan-ı ibrette bir Müslim –mesela– bir Hristiyan veya bir Kürt, bir Rum ile manen hissiyatları mübareze-i hamiyette mukabele ve muvazene ile tezahür etse temsilin sırrını göreceksin. Lâkin şu tefavüt, herkesin zannettiği gibi değildir. Belki zâhir-perestlik ve sathîlik ve galat-ı histen gelmiştir.
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | فكما قيل في البداية أينما كان المسلم فهو البدوي بالنسبة للنصراني، مستنكف عن المدنية لا يكترث بها ويتحرج في قبولها، فإذا ما بُدّلت الصورة فالوضع يتبدل.. |
| '''Ey Müslüman!'''
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| <div lang="tr" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
| | وكل آت قريب. |
| Aldanma! Başını indirme! Paslanmış bîhemta bir elmas, daima mücella cama müreccahtır. Zâhiren olan İslâmiyet’in zaafı, şu medeniyet-i hazıranın, başka dinin hesabına hizmet etmesidir. Halbuki şu medeniyet suretini değiştirmesi zamanı hulûl etmiştir. Suret değişirse kaziye bilakis olur. Nasıl şimdiye kadar bidayetinde söylenildiği gibi nerede Müslüman varsa Hristiyana nisbeten bedevî, medeniyete karşı müstenkif ve soğuk davranır ve kabulünde ızdırap çeker. Suret değişse başkalaşır.
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| | و ﴿ اِنَّ مَعَ الْعُسْرِ يُسْرًا ﴾ (الشرح: ٦) |
| كُلُّ اٰتٍ قَرٖيبٌ اِنَّ مَعَ ال۟عُس۟رِ يُس۟رًا
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| | '''سعيد النورسي''' |
| '''Said Nursî (rh)''' | |
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